Saturday 19 December 2015

वादों का क्या ?

कहते है, वादों का क्या?
वादे अक्सर टूट जाया करते है पर कोशिशें कामयाब होती है।

लगाव हो हमें जिनसे, उनके टूटने पर तो
पीड़ा भी असीम होती है, कराह भी अथाह,
वादा तो है, प्रष्फुटित विवेक की अन्तरिम प्रवाह,
मानवीय संवेदनाओं की भावपूर्ण चेतना का प्रष्फुटन,
ये जगा जाते है भावनात्मक उम्मीद,
जहां जिन्दगियों के परिणाम होते है प्रभावित,

हर वो शै जो टूटने वाली है,
स्थायित्व का है अभाव उनमें,
जैसे ,,,नींद टूट जाती है, सपने टूट जाया करते हैं,
दिल टूट जाया करते है, शीशा टूट जाता हैं,
और तो और रिकार्ड टूट जाते हैं,
स्थाई नही है ये जरा भी, न है इनका मलाल इन्हें।

फिर वादा निभाने की हमारी निष्ठा
कहां और क्युं हो जाती है विलीन,
मानवीय भावनाओं के उपर भी क्या कुछ और हैं
जो कर जाती हैं हमें विवश वादे तोड़ने को
जिन्दगियों से खिलवाड़ करने को.......

क्यूँ न हम वादा निभाने की कोशिश करें,
दिलों को टूटने से रोके जिन्दगियों को निखार दें
आत्मा पर और बोझ ना पड़े
सुकूँ और करार मिले,,,,,,

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