Thursday 24 December 2015

तुम मुझमें हो

देखो ना,
तुम मुझमे हो,
जैसे धड़कनें है हृदय के अंदर,
इन्हें रखने को जीवित,

पर क्या धड़कन को भी है,
किसी हृदय की जरूरत,
धड़कते रहने को,
अपने अस्तित्व को जिन्दा रहने को,

तुम मुझमे हो,
इससे यह कहां साबित होता है कि,
मैं भी तुझमे हूँ,
मेरी जरूरत भी है तुम्हें,
उतनी ही संजीदगी से।

एहसास जिन्दा हों तो,
हमें एक दूसरे की जरूरत है,
दुनियाँ भर की तमाम यादें समाहित हैं,
इन चंद पंक्तियों में...................
तुम भी हो इसमें कही न कही।

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