Wednesday 13 January 2016

तम जीवन का


छँटते नही रात के तम कभी,
व्यर्थ जाती मेहनत चाँद की भी,
रात्रि तम तमस घनघोर,
रौशनी चाँद की मद्धम चितचोर,
कुछ वश मे नही लाचार चाँदनी के भी?

काजल सम बादल नभ पर,
चाँदनी आभा को करते तितर बितर,
व्यर्थ कोशिश तारों के मंडली की भी,
रात्रि तम विहँसती हो मुखर,
कुछ वश मे नही लाचार तारों के भी?

तम जीवन का हरना हो तो,
खुद सूरज बन जग मे जलना होगा,
तम मिट जाएंगे चाँद तारों के भी,
जीवन हो जाएगा मुखर,
क्या वश मे है बनना सूरज इंसानों के भी?

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