Tuesday 19 January 2016

बवंडर व्योम का

बवंडर सा आज उठ रहा व्योम मे क्युँ,
क्या खो गई है सहनशीलता व्योम की,
या फिर टूट गए इसके तार धीरज के।

रूह बादलों के आज काप उठे हैं क्युँ,
क्युँ अनन्त के हृदय मची चक्रवात सी,
नभ ने छोड़ दिए क्या हाथ धीरज के।

पाप व्योम में पसर गयी है पीड़ा बन ज्यों,
रो रहा मन व्योम का कोलाहल करता यूँ,
अश्रुवर्षा करते काले घन साथ नीरव के।

ये बवंडर व्योम के पीड़ा की प्रकटीकरण,
चक्रवात बादलो के व्यथा की स्पष्टीकरण,
चलने दे आँधियाँ कुछ तम छटे जीवन की।

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