Wednesday 27 January 2016

इंतजार एकाकीपन का


कौन किसका इंतजार करता इस जग में,
क्षणिक इंतजार भी डसता इस मन को,
पार इंतजार की उस क्षण के,
इक एकाकीपन रहता जीवन में,
फिर क्युँ किसी का इंतजार करूँ इस जग में।

वक्त इंतजार नही करता किसी का जग में,
वक्त अथक आजीवन चलता ही रहता,
इंतजार उसे पार उस क्षण का,
कब एकाकीपन मिलता उससे जीवन में,
फिर क्युँ वो इंतजार करे किसी का इस जग में।

अथक इंतजार जो भी करता इस जग में,
पागल उस मानव सा ना कोई मैं पाता,
घड़ियाँ गिनता वो उस क्षण का,
जो लौट कर वापस ना आता जीवन में,
फिर क्युँ करता वो इंतजार बेजार इस जग में।

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