Wednesday 10 February 2016

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम,

मैं रहता हूँ हृदय में तेरे मांग तेरी सजाता हूँ,
तुम देखती हो सपने, सिर्फ मेरे ही सपने,
जुल्फों की बिखरी लटें तेरी मैं ही सहलाता हूँ,
रोज ही गूंधता हूँ एक फूल लटों में तेरे ।

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम,

तुम्हारी आँखों में सजाता हूँ जीवन की तस्वीरें,
गगन की छाँव से काजल ले आता हूँ,
इन्तजार में देहरी पर बैठी हो तुम मेरे ही,
तेरी आँखों में बस एक मैं ही रहता हूँ।

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम,

देखता हूँ बीतती उमर अपनी सामने तेरे,
तुम साधना में बैठी हो संग मेरे ही,
उदय होते है दिन मेरे नयनों के निलय में तेरे,
मुग्ध होता हूँ झुर्रियाँ देख चेहरे पे तेरे।

हृदय में पलने दो बस इतना सा स्वप्न तुम।

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