Friday 5 February 2016

मैं मगन घन-व्योम प्रेम मे!

मैं मगन घटा के घन-वयोम प्रेम मे हरपल!

बादलों का नैसर्गिक धरा प्रेम,
आश्वस्त अन्तर्धान मैं मादकता मे घन की,
मुझको विश्वास उसकी चंचलता में,
चपल रहकर हर पल अविरल,
छाँव ठंढ़क की देता धरा को कम से कम दो पल!
मूक संसृति बादलों की हरते मन।

मैं मगन घटा के घन-वयोम प्रेम मे हरपल!

बादलों का गूँजित सृष्टि प्रेम,
गूँजते हैं कान मेरे जब-जब गूँचते हैं घन,
सृष्टि को विश्वास उसकी झंकृत गूँज मे,
आच्छादित घनन घनघोर अतिघन,
वृष्टि कर जल प्लावित करते धरा को कम से कम!
घनघोर गर्जन बादलों की हरते मन।

मैं मगन घटा के घन-वयोम प्रेम मे हरपल!

बादलों का आलोकित व्योम प्रेम,
धधकते हैं प्राण मेरे जब कड़कते हैं घन,
व्योम को विश्वास उसकी तड़ित वेदना में,
रह रहकर सिहर उठते घन उसपल,
जलकर मौन संताप दूर करते व्योम का कम से कम!
तड़प जलन बादलों की हरते मन।

मैं मगन घटा के घन-वयोम प्रेम मे हरपल!

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