Wednesday 16 March 2016

इंतजार की लगन

इंतजार मे पलकें बिछाए बैठी थी वो जो राह में!

मन की रत्नगर्भा में,
असंख्य कुसुम से खिलने लगे,
हृदय की इन वादियों में,
गीत वनप्रिया के बजने लगे,
विश्रुपगा, सूर्यसुता, चक्षुजल,
सब साथ साथ बहने लगे।

इंतजार मे पलकें बिछाए बैठी थी वो जो राह में!

चुभते थे शूल राहों में,
 अब फूलों जैसे लगने लगे,
प्रारब्थ, नियति, भाग्य,
 सब के राह प्रशस्त होने लगे,
राह करवाल के धार सी,
 रम्य परिजात से लगने लगे।

इंतजार मे पलकें बिछाए बैठी थी वो जो राह में!

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