Tuesday 17 January 2017

पलने दो ख्वाब

चुप से हैं कुछ ख्वाब, कुछ इनको कह जाने दो....

गहरी सी दो आँखों में, ख्वाबों को पलने दो,
कुछ रंग सुनहरे मुझको, ख्वाबों मे भर लेने दो,
तन्हाई संग मुझको, इन पलकों में रह लेने दो,
बुत बना बैठा हूँ, ख्वाब जरा बुन लेने दो....

गहरी सी हैं दो आँखें, डूब न जाए ख्वाब मेरे,
इन चंचल से दो नैनों में, टूट न जाए ख्वाब मेरे,
पलकें यूँ न मूंदो, कहीं सो जाए न ख्वाब मेरे,
ख्वाब नए हरपल, जरा साँसों में पिरोने दो.....

सतरंगी से कुछ ख्वाब, इन्द्रधनुष बन छाने दो,
कहीं टूटे ना ये ख्वाब, इन्हें हकीकत बन जाने दो,
नन्हे-नन्हे से ख्वाब, इन्हे खिल कर मुस्काने दो,
फिर देखें हम ख्वाब, आँखों को सहलाने दो....

गुमसुम से हैं कुछ ख्वाब, कुछ इनको कह जाने दो....

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