Monday 8 July 2019

बहल जा दिल

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

नाराज है क्यूं, दूर बैठा  क्यूं ऐसे आज है तू?
माना, बस दिखावे की, यहाँ है दिल्लगी,
मिठास बस बातों में है, पर हर बात में है ठगी,
कुछ ऐसी ही है, वश में कहाँ है जिन्दगी?

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

है ये कैसी बेरुखी, तू इतना भी, क्यूं है दुखी?
साथ तेरे, हाथ थामे, चल रही है जिन्दगी,
तू जरा ये जाम ले, खुद को जरा सा थाम ले,
हँस ले जरा, चाहे जितना सताए जिन्दगी!

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

है तुझे क्या वास्ता, गर, कोई बदल ले रास्ता?
मान ले, हर पल, जिन्दगी है इक हादसा,
है ये मयखाना, कहाँ टूटे पैमानों से है वास्ता,
अजीब रंग कितने, दिखाएगी ये जिन्दगी!

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

माना, हिस्से में तेरे, अजीबोगरीब है किस्से!
फूल चुनने हैं तुझे, राहों के इस शूल से,
सीखनी है बन्दगी, बिखरे हुए इस धूल से,
हर भूल से, कुछ तो सिखाएगी जिन्दगी!

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

16 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 09, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-07-2019) को "जुमले और जमात" (चर्चा अंक- 3391) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत सुंदर रचना

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    1. आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ ।

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  5. है तुझे क्या वास्ता, गर, कोई बदल ले रास्ता?
    मान ले, हर पल, जिन्दगी है इक हादसा,
    है ये मयखाना, कहाँ टूटे पैमानों से है वास्ता,
    अजीब रंग कितने, दिखाएगी ये जिन्दगी!
    कविता की हर पंक्ति यथार्थ से रू ब रू कराती हुई। बहुत खूब।

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    1. कविता की अन्तर्निहित भाव से जुड़ने एवं प्रतिक्रिया देने हेतु आभारी हूँ आदरणीया।

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  6. वाह!!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूबसूरत रचना !

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  7. नाराज है क्यूं, दूर बैठा क्यूं ऐसे आज है तू?
    माना, बस दिखावे की, यहाँ है दिल्लगी,
    मिठास बस बातों में है, पर हर बात में है ठगी,
    कुछ ऐसी ही है, वश में कहाँ है जिन्दगी?...बेहतरीन सृजन आदरणीय
    प्रणाम
    सादर

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    1. कविता की अन्तर्निहित भाव से जुड़ने एवं प्रतिक्रिया देने हेतु आभारी हूँ आदरणीया।

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  8. है ये कैसी बेरुखी, तू इतना भी, क्यूं है दुखी?
    साथ तेरे, हाथ थामे, चल रही है जिन्दगी,
    तू जरा ये जाम ले, खुद को जरा सा थाम ले,
    हँस ले जरा, चाहे जितना सताए जिन्दगी!
    छोटी छोटी बातें मन को छू जाती हैं सही कहा मन से जीवन जुड़ा है बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन..
    बहुत लाजवाब।

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    1. कविता की अन्तर्निहित भाव से जुड़ने एवं प्रतिक्रिया देने हेतु आभारी हूँ आदरणीया।

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