Sunday 27 October 2019

दीप मेरा

ढ़ल ही जाएगी, तम की, ये भी रात!

करोड़ों दीप, कर उठे, एक प्रण,
करोड़ों प्राण, जग उठे, आशा के क्षण,
जल उठे, सारे छल, प्रपंच,
लुप्त हुए द्वेष, क्लेश, मन के दंश,
अब ये रात क्या सताएगी?
तम की ये रात, ढ़ल ही जाएगी!

यूँ तो, सक्षम था, एक दीप मेरा,
था विश्वस्त, हटा सकता है वो अंधेरा,
जला है, ये दीप, हर द्वार पर,
है ये भारी, तम के हरेक वार पर,
अब ये रात क्या डराएगी?
विध्वंसी ये रात, ढल ही जाएगी!

अंत तक, जलेगा ये दीप मेरा,
विश्वस्त हूँ मैं, होगा कल नया सवेरा,
होंगे उजाले, ये दिल धड़केगे,
टिमटिमाते, आँखों में सपने होंगे,
अब ये राह क्या भुलाएगी?
निराशा की रात, ढ़ल ही जाएगी!

तम की ये भी रात, ढ़ल ही जाएगी!

दीपावली की अनन्त शुभकामनाओं सहित.....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 29 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-10-2019) को     "भइया-दोयज पर्व"  (चर्चा अंक- 3503)   पर भी होगी। 
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
    हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।  
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपको भी दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
    अंतिम पंक्तियाँ हृदय स्पर्शी है। अप्रतिम रचना।

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  4. वाह बेहतरीन रचना।बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति।

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  5. आशा की ज्योत जगाती.. जीवन में आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करती... हर अंधेरों से पार पाने को प्रेरित करती... बहुत ही खूबसूरत कविता आपने लिखि.. वापी में वर्तमान समय में इस तरह की कविताओं का लिखा जाना बहुत जरूरी है जब संसार स्वार्थी लोगों से भरता जा रहा है लोग खुद को आगे लाने के लिए दूसरों को अंधेरों में डाल रहे हैं बहुत अच्छा लिखा आपने

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    1. अति सुंदर और प्रेरक शब्दों हेतु हार्दिक आभार।

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  6. बहुत ही सुंदर रचना। दीपोत्सव की शुभकामनाएँ।

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