Sunday 17 November 2019

चुप हैं दिशाएँ

चुप हैं ये दिशाएँ, कहीं बज रहे हैं साज!
धड़कनों नें यूँ, बदले हैं अंदाज!

ओढ़े खमोशियाँ, ये कौन गुनगुना रहा है?
हँस रही ये वादियाँ, ये कौन मुस्कुरा रहा है?
डोलती हैं पत्तियाँ, ये कौन झूला रहा है?
फैली है तन्हाईयाँ, कोई बुला रहा है!
ये क्या हुआ, है मुझको आज!
लगे तन्हाईयों में, कहीं बज रहे हैं साज!
ख़ामोशियों ने, बदले हैं अंदाज!

चुप हैं ये दिशाएँ, कहीं बज रहे हैं साज!
धड़कनों नें यूँ, बदले हैं अंदाज!

किसकी है मुस्कुराहट, ये कैसी है आहट!
छेड़े है कोई सरगम, या है इक सुगबुगाहट!
चौंकता हूँ, सुन पत्तियों की सरसराहट!
सुनता हूँ फिर, अंजानी सी आहट!
खुली सी पलकें, हैं मेरी आज!
लगे तन्हाईयों में, कहीं बज रहे हैं साज!
मुस्कुराहटों के, बदले हैं अंदाज!

चुप हैं ये दिशाएँ, कहीं बज रहे हैं साज!
धड़कनों नें यूँ, बदले हैं अंदाज!

मुद्दतों तन्हा, रहा अकेला मेरा ही साया,
चुप हैं ये दिशाएँ, वो चुपके से कौन आया!
धुन ये कौन सा, धड़कनों में समाया?
रंग ये कौन सा, मन को है भाया?
ये पुकारता है, किसको आज!
लगे तन्हाईयों में, कहीं बज रहे हैं साज!
यूँ रुबाईयों ने, बदले हैं अंदाज!

चुप हैं ये दिशाएँ, कहीं बज रहे हैं साज!
धड़कनों नें यूँ, बदले हैं अंदाज!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवावार 17 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. इस प्रतिष्ठित मंच पर नियमित स्थान देने हेतु आभारी हूँ दी।

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  2. बहुत सुन्दर रचना। इसका लय बहुत बढ़िया है।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रोहितास जी।

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-11-2019) को "सर कढ़ाई में इन्हीं का, उँगलियों में, इनके घी" (चर्चा अंक- 3523) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

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    1. इस प्रतिष्ठित मंच पर नियमित स्थान देने हेतु आभारी हूँ।

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  5. किसकी है मुस्कुराहट, ये कैसी है आहट!
    छेड़े है कोई सरगम, या है इक सुगबुगाहट!
    चौंकता हूँ, सुन पत्तियों की सरसराहट!
    सुनता हूँ फिर, अंजानी सी आहट!
    खुली सी पलकें, हैं मेरी आज!
    लगे तन्हाईयों में, कहीं बज रहे हैं साज!
    मुस्कुराहटों के, बदले हैं अंदाज!वाहहह बेहतरीन रचना

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    1. हृदयतल से आभार आदरणीया अनुराधा जी।

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  6. सच है एक खूबसूरत सुगबुगाहट मन में कहीं हलचल मचाने लगे इस रचना को पढ़ते ही.. सुंदर प्रतीकबिंबो से सजी बहुत ही मनभावन कविता..!

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी ।

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