Tuesday 28 January 2020

धरोहर - इक चुनौती

ये सिरमौर मेरा, ये अभिमान हैं हमारे,
गर्व हैं इन पर हमें, ये हैं हमारे.... 

वर्षों पुरातन, सभ्यता हमारी,
आठ सौ नहीं, हजारों सदियाँ गुजारी,
नाज मुझे, मेरी संस्कृति पर,
कुचलने चले तुम, मेरे सारे धरोहर,
पर हैं जिन्दा, ये आज भी,
लिए गोद में, तेरी हर निशानी, 
ज़ुल्म की, तेरी हर कहानी,
और संजोये, नैनों में सपने सुनहरे,
कितनी ही, काँटों से गुजरे....

यूँ ही रहेंगे डटे, हमेशा ये सामने तेरे,
भले ये पथ, कंटकों से गुजरे...

जलती राह में, बिखरे अंगारे,
जलते रहे, भटके ना ये कदम हमारे,
विपत्तियों में, अंधेरों ने घेरे,
हर कदम, नए उलझनों के फेरे,
हर युग, चुनौतियों से गुजरे,
मिट ना सकी, संस्कृति हमारी,
जिन्दा है, ये धरोहर हमारी,
गर्व हमको, हैं यही अभिमान मेरे,
हम हर, अभिशाप से उबरे....

हिमगिरी सा, है खड़ा ये सामने तेरे,
भले ये पथ, कंटकों से गुजरे...

मिटाने चले थे, वो जो सभ्यता,
वो लूटेरा! भला क्या हमको लूटता,
कुछ लुटेरे, रह गए हैं देश में,
ये उनके वंशज, बदले से वेश में,
उगलते हैं, अब भी आग वो,
छेड़ जाते हैं, अलग ही राग वो,
जरा गर, लेते है साँस वो,
इक चुनौती, वही अब सामने घेरे,
चल हम, रूप अपना धरें....

ये सिरमौर मेरा, ये अभिमान हैं हमारे,
गर्व हैं इन पर हमें, ये हैं हमारे....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

14 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 28 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-01-2020) को   "तान वीणा की माता सुना दीजिए"  (चर्चा अंक - 3595)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मयंक जी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी।

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  6. दिल में विश्वास और देशभक्ति की भावना को जगाती सार्थक रचना

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनु जी।

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  7. वर्षों पुरातन, सभ्यता हमारी,
    आठ सौ नहीं, हजारों सदियाँ गुजारी,
    नाज मुझे, मेरी संस्कृति पर,

    इस धरोहर की रक्षा करना हमारा कर्तव्य हैं ,दिल में देश प्रेम जगाता बेहतरीन सृजन पुरुषोतम जी ,सादर नमन

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी।

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