गुजारे थे कल, पहाड़ों पे कुछ पल....
विशाल हृदय, वो स्नेह भरा दामन,
इक सम्मोहन, वो अपनापन,
विस्मित करते, वो आकर्षण के पल,
बसे, नज़रो में हैं, हर-पल!
गुजारे थे कल, पहाड़ों पे कुछ पल....
रोक रही राहें, खुली पर्वत सी बाँहें,
इक परदेशी, लौट कैसे जाए,
यूँ बांध गए थे, पाँवों में बेरी वो पल,
था तिलिस्म कोई, उस पल!
गुजारे थे कल, पहाड़ों पे कुछ पल....
संदेश कोई, ले आई थी मंद पवन,
मैं, एकाग्र-चित्त, ध्यान मग्न,
सांध्य किरण, लाई थी इक सिहरन,
ठहरे वो पल, थे बड़े चंचल!
गुजारे थे कल, पहाड़ों पे कुछ पल....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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"पहाड़" हमेशा से ही हमारी अनुभूतियों को सजग करने में सक्षम रहे हैं, जब भी इनकी ऊच्च शिखरों को देखता हूँ तो अनायास ही उस ओर खींचा चला जाता हूँ और लगता है जैसे "खुद को छोड़ आया हूँ उन पहाड़ों में ...." - पहाड़ों में
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-03-2020) को "होलक का शुभ दान" (चर्चा अंक 3637) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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रंगों के महापर्व होलिकोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय ।
Deleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 11 मार्च 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसंदेश कोई, ले आई थी मंद पवन,
ReplyDeleteमैं, एकाग्र-चित्त, ध्यान मग्न,
सांध्य किरण, लाई थी इक सिहरन,
ठहरे वो पल, थे बड़े चंचल!
पहाड़ो की सुन्दरता पर बहुत ही खूबसूरत मनभावन सृजन
वाह!!!
आपकी सराहना हेतु हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीया सुधा देवरानी जी ।
ReplyDeleteसुंदर पल, सजीव चित्रण।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय विश्वमोहन जी।
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