Monday 7 September 2020

चाँद चला अपने पथ

वो चाँद चला, छलता, अपने ही पथ पर!

बोल भला, तू क्यूँ रुकता है?
ठहरा सा, क्या तकता है?
कोई जादूगरनी सी, है वो  स्निग्ध चाँदनी,
अन्तः तक छू जाएगी,
यूँ छल जाएगी!

वो चाँद चला, छलता, अपने ही पथ पर!

कुछ कहता, वो भुन-भुन-भुन!
कर देता हूँ मैं, अन-सुन!
यथासंभव, टोकती है उसकी ज्योत्सना,
यथा-पूर्व जब रात ढ़ला,
यूँ कौन छला?

वो चाँद चला, छलता, अपने ही पथ पर!

दुग्ध सा काया, फिर भरमाया,
चकोर के, मन को भाया
पाकर स्निग्ध छटा, गगण है शरमाया,
महमाई फिर निशिगंधा,
छल है छाया!

वो चाँद चला, छलता, अपने ही पथ पर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 07 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. कुछ कहता, वो भुन-भुन-भुन!
    कर देता हूँ मैं, अन-सुन!
    यथासंभव, टोकती है उसकी ज्योत्सना,
    यथा-पूर्व जब रात ढ़ला,
    यूँ कौन छला?
    बहुत खूब,एक मधुर गीत जो मंत्रमुग्ध कर गया ,सादर नमन आपको

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी। आभार।

      Delete
  3. कोई जादूगरनी सी, है वो स्निग्ध चाँदनी,
    अन्तः तक छू जाएगी,
    यूँ छल जाएगी!
    -अद्धभुत लेखन

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया विभा जी, आपकी प्रशंसा का पात्र बन सका, इस हेतु आभार।

      Delete
  4. वाह लाजबाव रचना

    ReplyDelete
  5. सभी रचनाएँ बेमिसाल हैं, उनमें एक प्रकृत प्रवाह है - - नमन सह।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुखद अनुभूति। बहुत-बहुत धन्यवाद।

      Delete