Sunday 15 November 2020

गहरी रात

कितनी गहरी, ये रात!
दिवा-स्वप्न की, तू ना कर बात!

इक दीप जला है, घर-घर,
व्यापा फिर भी, इक घुप अंधियारा,
मानव, सपनों का मारा,
कितना बेचारा,
चकाचौंध, राहों से हारा,
शायद ले आए, इक नन्हा दीपक!
उम्मीदों की प्रभात!

कितनी गहरी, ये रात!
दिवा-स्वप्न की, तू ना कर बात!

कतरा-कतरा, ये लहू जला,
फिर कहीं, इक नन्हा सा दीप जला,
निर्मम, वो पवन झकोरा,
तिमिर गहराया,
व्याकुल, लौ कुम्हलाया,
मन अधीर, धारे कब तक ये धीर!
कितनी दूर प्रभात!

कितनी गहरी, ये रात!
दिवा-स्वप्न की, तू ना कर बात!

तम के ही हाथों, तमस बना,
इन अंधेरी राहों पर, इक हवस पला,
बुझ-बुझ, नन्हा दीप जला,
रातों का छला,
समक्ष, खड़ा पराजय,
बदले कब, इस जीवन का आशय!
अधूरी, अपनी बात!

कितनी गहरी, ये रात!
दिवा-स्वप्न की, तू ना कर बात!
--------------------------------------------------
दीपावली का दीप, इक दिवा-स्वप्न दिखलाता  गया इस बार। कोरोना जैसी संक्रमण, विश्वव्यापी मंदी, विश्वयुद्ध की आशंका, सभ्यताओं से लड़ता मानव, मानव से ही डरता मानव आदि..... मन में पलती कितनी ही शंकाओं और इक उज्जवल सभ्यता की धूमिल होती आस के मध्य जलता, इक नन्हा दीप! इक छोटी सी लौ....गहरी सी ये रात.... और पलता इक दिवास्वप्न!
--------------------------------------------------
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

32 comments:

  1. शुभ हो दीप पर्व मंगलमय हो। सुन्दर सृजन।

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 16 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. शायद ले आए,एक नन्हा दीपक ! उम्मीदों का प्रभात ! बहुत सुंदर!

    ReplyDelete
  4. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।
      चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

      Delete
  5. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-11-20) को "बदलो जीवन-ढंग"'(चर्चा अंक- 3888) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
  6. वाह!पुरुषोत्तम जी ,बेहतरीन ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया शुभा जी।

      Delete
  7. उत्कृष्ट चिंतन

    ReplyDelete
  8. इक दीप जला है, घर-घर,
    व्यापा फिर भी, इक घुप अंधियारा,
    मानव, सपनों का मारा,
    कितना बेचारा,
    चकाचौंध, राहों से हारा,
    शायद ले आए, इक नन्हा दीपक!
    उम्मीदों की प्रभात!

    .. उम्मीद ही है जो जिन्दा रखती है हर हाल में इंसान को

    बहुत अच्छी चिंतन-मनन प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।
      चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

      Delete
  9. आशा जगाती सुन्दर रचना| दीपपर्व की शुभकामनाएँ!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।
      चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

      Delete
  10. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।
      चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

      Delete
  11. बहुत ही गहरी है यह बात । अति सुंदर ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।
      चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

      Delete
  12. इक दीप जला है, घर-घर,
    व्यापा फिर भी, इक घुप अंधियारा,
    मानव, सपनों का मारा,
    कितना बेचारा,
    चकाचौंध, राहों से हारा,
    शायद ले आए, इक नन्हा दीपक!
    उम्मीदों की प्रभात!...बहुत ही सुंदर सृजन सर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।
      चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

      Delete
  13. सुन्दर व प्रभावशाली रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद।
      चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

      Delete
  14. बेहतरीन रचना

    ReplyDelete