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Sunday 14 March 2021

दोराहों पर

साथ चले होते, कुछ पल,
संशय के उन दोराहों पर, काश!
था, वहीं कही!
नीला सा, अपना भी आकाश!

हठात्, करता क्या अम्बर,
अकस्मात्, टूटा था इक विश्वास,
निर्णय-अनिर्णय के, उस दोराहे पर,
उभर आए, कितने ही सागर,
व्याकुल, लहर-लहर!

ज्यूँ, सावन में, हो पतझड़,
पात-पात, टूट बिखरे राहों पर,
मन्द हो चला हो, सावन का माधुर्य,
सांसें उखरी हों, उम्मीदों की,
अन्तः, टूटा हो स्वर!

सुलझा लेना था, संशय,
दोराहों को, दे देना था आशय,
एक पथ, पहुँचा देती मंजिल तक,
सहज, दूर होता असमंजस,
राहों में, ठहर-ठहर!

पर, हावी थी इक जिद,
अहम, प्रभावी था निर्णय पर,
रिश्ते शर्मसार हुए थे, दोराहों पर,
संज्ञा-शून्य हुए, मानव मूल्य,
तिरस्कृत, हो कर!

दर्पण, अक्श दिखाएगा,
तुझसे वो जब, नैन मिलाएगा,
पूछेगा सच, क्यूँ छोड़ा तुमने पथ?
डुबोई क्यूँ, तुमने इक नैय्या,
साहिल पर, लाकर!

साथ चले होते, कुछ पल,
संशय के उन दोराहों पर, काश!
था, वहीं कही,
नीला सा, अपना भी आकाश!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday 3 March 2016

अकस्मात् ही

कुछ मन की खुशी, अकस्मात् मिली यूँ,
रेत भीग गई हो कहीं, रेगिस्तान में  ज्यूँ,
जैसे जून में जमकर बरसी है बारिश यूँ,
कौंध गया है मन जैसे ठंढ़ी फुहार में यूँ।

हठात् मिल जाता है जब मनचाहा कोई,
खुशी मिलन की तब हो जाती है दोगुनी,
अकस्मात् बिछड़े जब, मिल जाते कहीं,
जीने की चाहत तब, बढ़ जाती और भी।

बिजली कौंधती बारिश मे अकस्मात् ही,
बूंद बनती है मोती सीप में अकस्मात् ही,
आसमान मे छाते हैं बादल अकस्मात् ही,
दो दिल मिलते हैं जीवन में अकस्मात ही।

पल पल की ये खुशियाँ जीवन की निधि,
हर पल जीवन जीने की देती है ये शक्ति,
अकस्मात् गले किसी को लगा लो अभी,
मंत्र शायद खुश रहने का जीवन में यही।