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Tuesday 11 June 2019

तनिक उदासी

यूँ हर लम्हा, हर क्षण, हमेशा ही, पास हो तुम!
फिर भी, तनिक उदास हैं हम!

अभी-अभी, तुम्हारा ही एहसास बन,
बह चली थी, इक ठंढ़ी सी पवन,
छूकर गए थे, हौले से तुम,
सिहरन, फिर वही, देकर गए थे तुम,
अब जो रुकी है वो पवन,
कहीं दूर हो चली है, तेरी छुअन!

यूँ हर लम्हा, हर क्षण, हमेशा ही, पास हो तुम!
फिर भी, तनिक उदास हैं हम!

अभी-अभी, निस्तब्ध कर गए थे तुम,
मूर्त तन्हाईयों में, हो गए थे तुम,
अस्तब्ध हो चला था मन,
उत्तब्ध थे वो लम्हे, स्तब्ध थी पवन,
शब्द ही ले उड़े थे तुम,
कुछ, कह भी तो ना सके थे हम!

यूँ हर लम्हा, हर क्षण, हमेशा ही, पास हो तुम!
फिर भी, तनिक उदास हैं हम!

वो चाँद है, या जैसे अक्श है तुम्हारा,
है चाँदनी, या जैसे तुमने पुकारा,
अपलक, ताकते हैं हम,
नर्म छाँव में, तुम्हें ही झांकते हैं हम,
तुम्हे ढूंढते हैं बादलों में,
तिमिर राह में, जब होते हैं हम!

यूँ हर लम्हा, हर क्षण, हमेशा ही, पास हो तुम!
फिर भी, तनिक उदास हैं हम!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Thursday 25 January 2018

उम्र

ऐ उम्र, जरा ठहर!  ऐसी भी क्या है जल्दी!

अब तक बीता ये जीवन व्यर्थ ही,
अर्थ जीवन का मिला नहीं,
कुछ अर्थपूर्ण करना है अभी-अभी,
ठहर ना, तू बीत रही क्यूँ जल्दी-जल्दी? 

अभी खुल कर हमने जिया नहीं,
मन का कुछ भी  किया नहीं,
आई थी तू भी तो बस अभी-अभी,
फिर जाने की, क्यूँ ऐसी भी है जल्दी?

पथ कंटक वाली ही सभी मिली,
फूलों सी राहों पर चला नही,
पथ फूलों की दिखी है अभी-अभी,
यहीं रुक जा, जाने की क्या है जल्दी?

जितनी भी पी, वो थी गरल भरी,
अधरों से ये अमृत विरल रही,
चाहत पीने की जागी अभी-अभी,
जरा ठहर, जाने की ऐसी क्या जल्दी?

रिश्तों की कितनी गाठें खुली नहीं,
मन की गाठें भी यूँ रही बंधी,
गांठें चाहत की खुली अभी-अभी,
फिर जाने की, ऐसी भी क्या है जल्दी?

ऐ उम्र, तूने उड़ान ये कैसी भरी?
पल में ही सदियाँ ये गुजर गई,
ख्वाहिश जीनै की थी अभी-अभी,
फिर क्यूँ, तुझे जाने की ऐसी है जल्दी?

कभी हाथों में तो तू आया ही नहीं,
संग चला पर साया भी नहीं,
स्पर्श भर कर गया तू अभी-अभी,
तू बैठ जरा, यूँ बीत न तू जल्दी-जल्दी!

ऐ उम्र, जरा ठहर!  ऐसी भी क्या है जल्दी!