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Thursday 11 February 2016

मैं प्रीत का गीत

प्रिय, मैं प्रीत का गीत बन तुम पर अर्पित हो जाऊँ।

मंदिर इक बनी है कल्पनाओं में मेरी,
सपन सलोनी मूरत रखी है वहाँ तेरी,
अर्पित करता प्रीत नित पूजा में तेरी।

प्रिय, चाहत मेरी पलकों में तेरी सपने मैं सजाऊँ।

सपनों के भँवर जाल मे उलझा तेरी,
मोहक वो स्वप्न जिसमें है सूरत तेरी,
सपनों सम रंगीन दुनिया तुझमें मेरी।

प्रिय, तेरे शब्दों से मन के मर्म की कहानी लिख जाऊँ। 

विवश मर्म मन के मुखरित हो कैसे,
अधरों के शब्द निःशब्द पड़े हों जैसे,
चाह अधरों को तेरी शब्दों की जैसे।

प्रिय, सुरमई संगीत बन तेरे अधरों पर रंजित हो जाऊँ।