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Friday 14 December 2018

खामोश तेरी बातें

खामोश तेरी बातें,
हैं हर जड़ संवाद से परे ...

संख्यातीत,
इन क्षणों में मेरे,
सुवासित है,
उन्मादित साँसों के घेरे,
ये खामोश लब,
बरबस कुछ कह जाते,
नवीन बातें,
हर जड़ विषाद से परे!

खामोश तेरी बातें,
हैं हर जड़ संवाद से परे ...

उल्लासित,
इन दो नैनों में मेरे,
अहसास तेरा,
है तेरे अस्तित्व से परे,
ये बहती हवाएं,
संवाद तेरे ही ले आए,
ये आमंत्रण,
हर जड़ अवसाद से परे!

खामोश तेरी बातें,,
हैं हर जड़ संवाद से परे ...

अंत-विहीन,
ऊँचे दरख्तों से परे,
तेरे ही साए,
गीत निमंत्रण के सुनाए,
अंतहीन व्योम,
तैरते श्वेत-श्याम बादल,
उनमुक्त ये संवाद,
हर जड़ उन्माद से परे !!

खामोश तेरी बातें,
हैं हर जड़ संवाद से परे ...

Wednesday 17 February 2016

अनबुझी प्यास

अंकुरित अभिलाषा पलते एहसास,
अनुत्तिरत अनुभूतियाँ ये कैसी प्यास?

अन्तर्द्वन्द अन्तर्मन अंतहीन विश्वास,
क्षणभंगूर निमंत्रण क्षणिक क्या प्यास?

पिघलते दरमियाँ छलकते आकाश,
अनकहे निःस्तब्ध जज्बात कैसी मौन प्यास?

अमरत्व अभिलाषा स्मृति अविनाश,
अंकुरित अनुभूति अनुत्तरित अनबुझी प्यास?

Friday 15 January 2016

कौन रहा पुकार?

आह! है कौन वो जो छेड़़ जाती मन के तार?

कानों मे गूंजती एक पुकार,
रह रहकर सुनाई देती वही पुकार,
सम्बोधन नहीं होता किसी का उसमें,
फिर भी जाने क्यों होता एहसास
कोई पुकार रहा मुझे बार-बार!

आह! यह किसकी वेदना कर रही चित्कार?

हल्की सी भीनी सुगन्ध चली कहाँ से,
बढ़ती जाती सुगंध हवाओं के साथ,
पहचानी सी खुशबु पर आमंत्रण नहीं उसमें,
फिर भी जाने क्यों होता एहसास,
कोई बुला रहा मुझको उधर से बार-बार!

आह! यह किसकी खुशबु मुृझको रही पुकार?

Sunday 20 December 2015

वो मधुर आवाज

वो मधुर आवाज जीवन का आवर्त लिए
कानों मे गूंजती सदा प्रिय अहसास लिए,

आवाज.... जिसमे है माधूर्य,
कोमल सा रेशमी दिलकश तान,
जैसे कोयल ने छेड़ी हो सदा,
कूक से उसकी सिहर उठा हो विराना,
पत्तियों को छेड़ा हो हवाओं ने,
उसकी सरसराहट जैसे रही है गूंज,
भँवरे जैसे सुना गए हो गीत नया,
लहरें जैसे बेकल हों सुनाने को कोई बात ।

बारबार वही आवाज जाती है क्यूँ कर
मन को बेकल और उद्विग्न,
हृदय के झरमुट मे गूंजती वो शहनाई,
क्युँ सुनने को होता मैं बेजार
जबकि मुझे पता है,
वो आवाज तो है कही मुझसे दूर,
नहीं है उसपे वश मेरा,
यकी की हदों से से कही दूर
जहां नही पहुच पाते मेरे हाथ,
कल्पना ने तोड़ दिए है अपने दम,

वक्त भी है कितना बेरहम,
भाग्य भी है कितना निष्ठुर,
ईश्वर का निर्णय भी है कितना कठोर
क्युं नही पूरी कर सकता मेरी लघु याचना,
बस वो मधुरआवज ही तो मांगी है हमने,
प्रिय अहसास की ही तो है प्यास,
जीवन का आवर्त ही तो मांगा है मैनें।

जीवन के इस पार या
जीवन के उस पार,
मैं सुन पाऊंगा वो मधुर आवाज,
मेरी क्षुधा न होगी कम, प्यास रहेगी सदा ।

Wednesday 16 December 2015

जीवन एक अहसास

जीवन एक अहसास,
कहीं खुशी से लबरेज लम्हें,
तो कही दुख के अंतहीन पल,
कभी चैन के दो पल,
तो कही विवश करती जरूरतें।

इन्ही विविधताओं के बीच
जीवन जीने की बाध्यता.....!

कुछ भी तो नही है हमारे वश मे,
फिर भी सभी कुछ वश में कर लेने की, 
अंतहीन चाह,
समस्त मानवीय संवेदनाओं पर
दंभ और अभिमान का दंश!

करुणा, विनय, प्यार, अहसास,
ये सभी किताबों में अंकित
मृत अक्षरों से दिखते है.......!

जीवन को जीवंत बनाने का अहसास,
न जाने किधर गुम है
शायद इन सिक्को की झंकार में,
या फिर,
हमारी सामंती मंशाओं के बीच
पिस सी गई है?