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Sunday 30 January 2022

कठिन जरा

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

शायद, खुल जाए मन की गांठें,
कट पाए, चैन से वो रातें,
घनीभूत कर जाते, अक्सर, जो नैन,
पल-पल, भारी वो रैन,
संताप भरे, जब काली रात ढ़ले,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

पर, कठिन जरा, धीर रख पाना,
बहते पल का, रुक जाना,
पल की हलचल में, घुल-मिल जाना,
कोलाहल में, सुन पाना,
बदले परिवेश, थम जाए आवेग,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

यूं दुराग्रहों से, उबर पाया कौन?
कौन, जो सुन पाये मौन!
संताप ही भर जाते, आवेशित पल,
थम जाए, जब बादल,
बरस कर, ठहर जाए, जब पल,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday 27 September 2018

मन के आवेग

आवेग कई रमते इस छोटे से मन में,
जैसे बूँदें, बंदी हों घन में....

गम के क्षण, मन सह जाता है,
दुष्कर पल में, बह जाता है,
तुषारापात, झेल कर आवेगों के,
विकल हो जाता है.....

मन कोशों दूर निकल जाता है,
फिर वापस मुड़ आता है,
बंधकर आवेगों में, रम जाता है,
वहीं ठहर जाता है...

प्रवाह प्रबल मन के आवेगों में,
कहीं दूर बहा ले जाता है,
कण-कण प्लावित कर जाता है,
बेवश कर जाता है....

गर वश होता इन आवेगों पर,
धीर जरा मन को आता,
खुद को ले जाता निर्जन वन में,
चैन जहाँ रमता है...

आवेग कई रमते इस छोटे से मन में,
जैसे बूँदें, बंदी हों घन में....

Monday 28 December 2015

धुँधला साया

आँखों मे इक धुंधला सा साया,
स्मृतिपटल पर अंकित यादों की रेखा,
सागर में उफनती असंख्य लहरों सी,
आती जाती मन में हूक उठाती।

वक्त की गहरी खाई मे दबकर,
साए जो पड़ चुके थे मद्धिम,
यादें जो लगती थी तिलिस्म सी,
इनको फिर किसने छेड़ा है?

यादों के उद्वेग भाव होते प्रबल,
असह्य पीड़ा देते ये हंदय को,
पर यादों पर है किसके पहरे,
वश किसका इस पर चलता है।

स्मृतिपटल को किसने झकझोरा,
बुझते अंगारों को किसने सुलगाया,
थमी पानी में किसने पतवार चलाया,
क्युँकर फिर इन यादों को तूने छेड़ा ?