Showing posts with label आशियाँ. Show all posts
Showing posts with label आशियाँ. Show all posts

Sunday 4 July 2021

आशियाँ

यही चमन, बस यही आशियाँ मेरा,
यहीं सांझ, यहीं सवेरा!

भटक जाता हूँ, कभी...
उड़ जाता हूँ, मानव जनित, वनों में,
सघन जनों में, उन निर्जनों में,
है वहाँ, कौन मेरा?

यही चमन, बस यही आशियाँ मेरा,
यही सांझ, यहीं सवेरा!

यहाँ बुलाए, डाल-डाल,
पुकारे पात-पात, जगाए हर प्रभात,
स्नेहिल सी लगे, हर एक बात,
है यही, जहान मेरा!

यही चमन, बस यही आशियाँ मेरा,
यही सांझ, यहीं सवेरा!

सुखद कितनी, छुअन,
छू जाए मन को, बहती सी ये पवन, 
पाए प्राण, यहीं, निष्प्राण तन,
मेरे साँसों का ये डेरा!

यही चमन, बस यही आशियाँ मेरा,
यही सांझ, यहीं सवेरा!

डर है, आए न पतझड़,
पड़ न जाए, गिद्ध-मानव की नजर,
उजड़े हुए, मेरे, आशियाने पर,
अधूरा है अनुष्ठान मेरा!

यही चमन, बस यही आशियाँ मेरा,
यही सांझ, यहीं सवेरा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday 25 May 2016

जलती हुई चिंगारियाँ

मिट चुका है शायद, जल के वो आँशियाँ,
दिखते नहीं है अब वहाँ, जलते अनल के धुआँ,
उठ रहे है राख से अब, जलती हुई चिंगारियाँ,
जाने किस आग में, जला है वो आँशियाँ।

दो घड़ी सासों को वो, देता था जो शुकून,
वो शुकून अब नहीं, दो पल के वो आराम कहाँ,
मरीचिका सी लग रही, अब साँसों का ये सफर,
साँसों की आँधियों में, बिखरा है वो आँशियाँ ।

जल रहा ये शहर, क्या बचेगा वो आशियाँ,
आग खुद ही लगाई, अब बुझाए इसे कौन यहाँ,
अपने ही हाथों से हमने, उजाड़ा अपना ये चमन,
राख के ढ़ेर को ही अब, कह रहे हम आशियाँ।

Sunday 22 May 2016

बदली सी फिजाँ

बदली सी है फिजाँ, अब इस शहर की मेरी,
हर शख्स ढूँढ़ता है यहाँ, इक आशियाँ अलग सी,
इक नाम मेरा है खुदा, चप्पे-चप्पे पे इस शहर की,
आशियाँ तो है मेरा, जर्रा जर्रा इस शहर की।

बदले हैं बस लोग, बदली कहाँ ये गलियाँ,
चैनो-ओ-शुकुन बदले हैं, गम ही गम है अब यहाँ,
चेहरों पे चेहरे हैं लगे, जुदा मुझसे मेरा साया यहाँ, 
दिल के करीब थे जो, गुमसुदा वो मुझसे यहाँ।

बदलते मौसमों से, बदले हैं अब रिश्ते यहाँ,
मुरझा चुके है फूल सब, रिश्तों के धागे लहुलुहाँ,
हर धड़कते दिलों के अन्दर, दर्द के सैकड़ों निशाँ,
लब्जों में छुपे हैं खंजर, मन से उठता है धुआँ।

सोचता हूँ आज मैं, कब लोग समझेंगे यहाँ,
रिश्तों की भीनी खुश्बुओं में, हम साँस लेते हैं यहाँ,
अंश नई कोपलों से कोमल, लहलहाते हैं अपने यहाँ,
हम धूल हैं इस शहर की, ये शहर है आशियाँ मेरा।