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Friday 14 May 2021

गुमसुम सा, ये घर

बड़ा ही, खुशमिजाज शहर था मेरा,
पर बड़ा ही खामोश, 
गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

कल चमक उठती थी, ये आँखें,
इक उल्लास लिए,
आज फिरती हैं, ये आँखे,
अपनी ही, लाश लिए,
किन अंधेरों में, जा छुपा है सवेरा!

गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

धड़कनें थी, कोई उम्मीद लिए,
कितने संगीत लिए,
अब थम सी गई, हैं साँसें,
विरहा के, गीत लिए,
जाते लम्हों में कहाँ, विश्वास मेरा!

गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

मिल कर, चह-चहाते थे ये लब,
रुकते थे, ये कब,
आज, भूल बैठे हैं ये सब,
बेकरारी का, ये सबब,
ये तन्हाई, ले न ले ये जान मेरा!

गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

न जाने, फिर, वो सहर कब हो!
वो शहर, कब हो!
छाँव वाली, पहर कब हो!
मेरे सपनों का वो घर,
यूँ ही न उजड़े, ये अरमान मेरा!

बड़ा ही, खुशमिजाज शहर था मेरा,
पर बड़ा ही खामोश, 
गुमसुम सा, आज ये घर है मेरा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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# कोरोना

Sunday 23 April 2017

उल्लास

इशारों से वो कौन खींच रहा क्षितिज की ओर मेरा मन!

पलक्षिण नृत्य कर रहा आज जीवन,
बज उठे नव ताल बज उठा प्राणों का कंपन,
थिरक रहे कण-कण थिरक रहा धड़कन,
वो कौन बिखेर गया उल्लास इस मन के आंगन!

नयनों से वो कौन भर लाया मधुकण आज इस उपवन!

पल्लव की खुशबु से बौराया है चितवन,
मधुकण थोड़ी सी पी गया मेरा भी यह जीवन,
झंकृत हुआ झूमकर सुबासित सा मधुबन,
जीर्ण कण उल्लासित चहुंदिस हँसता उपवन!

इशारों से वो कौन खींच रहा क्षितिज की ओर मेरा मन!

Wednesday 23 March 2016

वो कौन

वो कौन जो पुकार रहा क्षितिज की ओर इशारों से।

पलक्षिण नृत्य कर रहा आज जीवन के ,
बौराई हैं सासें मंजरित पल्लव की खुशबु से,
थिरक रहीं हैं हर धड़कन चितवन के,
वो कौन जो भर लाया है मधुरस आज उपवन सेे।

जीर्णकण उल्लासित चहुंदिस उपवन के,
जैसे घूँट मदिरा के पी आया हो मदिरालय से,
झंकृत हो उठे है तार-तार इस मधुबन के,
वो कौन जो बिखेर रहा उल्लास मन के आंगन में।

मधुकण अल्प सी पी गया मैं भी जीवन के,
बज उठे नवीन सुरताल प्राणों के अंतःकरण से,
गीत नए स्वर के छेर रहे तार मन वीणा के,
वो कौन जो पुकार रहा क्षितिज की ओर इशारों से।

Sunday 21 February 2016

खुशियों के ढ़ेह

खुशियों के ये पल अन-गिनत इस जीवन में,
बार बार उठती ढ़ेह सी आती जाती जीवन मे,
इस पल को चुन चुन कर दामन मे हम भर ले,
हम-तुम जी-भर खुलकर इस पल मिल ले।

बस झणिक पल दो पल की हैं ये खुशियाँ,
लहर-लहर ढ़ेह की बस मिटने को बनती यहाँ,
इस ढ़ेह सी क्या जाने हम कहाँ और तुम कहाँ,
कुछ कह सुन लें पल-भर साथ थोड़ा बह लें।

उल्लास के ये दो पल हैं जीवन की निधियाँ,
करुणा की नन्हीं बूँदों सी पलती हैं खुशियाँ यहाँ,
पल पल जीवन बीतता तू इस पल जी ले यहाँ,
इक दिन मुरझाना है इस पल तो खिल लें यहाँ।

Friday 1 January 2016

नववर्ष पर छोटी सी कामना!

नववर्ष पर छोटी सी कामना!

नव-प्रभात मिले नव-ऊर्जा,
नव प्रेरणा जगे नव चेतना, 
नवधारणा उपजे नवकामना,
नवदृष्टि खिले नित्य-नवपटल, 
नव-आकाश फैले नव-प्रकाश, 
नववर्ष,नवचाह, नव हो जीवन।

नव ल्क्ष्य मिले नवशिखर,
नव आशा मिले नवविहान,
नव तपस्या ले नव साधना,
नव धैर्य मिले नव प्रेरणा,
नव लगन मिले नव चेतना,
नववर्ष,नवचाह, हो नवजीवन।

नव प्रकाश, नव आकाश,
नव विश्वास नव उल्लास,
नव हिमम्त जगे नव आस,
नव विचार के नव निर्झर,
नव प्रणाम मिले नव आशीष।
नववर्ष,नवसंघर्ष,नव हो जीवन।

नववर्ष पर छोटी सी कामना!