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Friday 10 November 2017

ऋतुराज

फिजाओं ने फिर, ओस की चादर है फैलाई,
संसृति के कण-कण पर, नव-वधु सी है तरुणाई,
जित देखो तित डाली, नव-कोपल चटक आई,
ऋतुराज के स्वागत की, वृहद हुई तैयारी.....

नव-वधु सी नव-श्रृंगार, कर रही ये वसुंधरा,
जीर्ण काया को सँवार, निहार रही खुद को जरा,
हरियाली ऊतार, तन को निखार रही ये जरा,
शिशिर की ये पुकार, सँवार खुद को जरा.....

कण-कण में संसृति के, यह कैसा स्पंदन,
ओस झरे हैं झर-झर, लताओं में कैसी ये कंपन,
बह चली है ठंढ बयार, कलियों के झूमे हैं मन,
शिशिर ऋतु का ये, मनमोहक है आगमन.....

कोयल ने छेड़े है धुन, सुस्वागतम ऋतुराज,
रंगबिरंगे फूलोवाली, संसृति लेकर आई है ताज,
सतरंगी सी है छटा, संग झूम रहा ये ऋतुराज,
गीत गा रहे पंछी, शिशिर ने खोले हैं राज....

Friday 3 February 2017

रंगमई ऋतुराज

आहट पाकर त्रृतुराज की, सजाई है सेज वसुन्धरा ने....

हो रहा पुनरागमन, जैसे किसी नवदुल्हन का,
पीले से रंगों की चादर फैलाई हैं सरसों ने,
लाल रंग फूलों से लेकर मांग सजाई है उस दुल्हन ने,
स्वर में कंपन, कंठ में राग, आँखों में सतर॔गे सपने....

जीवन का अक्षयदान लेकर, दस्तक दी है त्रृतुराज ने....

हो रहा पुनरागमन, जैसे सतरंगी जीवन का,
सात रंगों को तुम भी भर लेना आँखों में,
उगने देना मन की जमीन पर, दरख्त रंगीन लम्हों के,
खिला लेना नव कोपल दिल की कोरी जमीन पे....

विहँस रहा ऋतुराज, बसन्ती अनुराग घोलकर रंगों में....

अब होगा आगमन, फगुनाहट लिए बयारों का,
मस्ती भरे तरंग भर जाएंगे अंग-अंग में,
रंग बिखेरेंगी ये कलियाँ, रंग इन फूलों के भी निखरेंगे,
भींगेगे ये सूखे आँचल, साजन संग अठखेली में....

गा रहा आज ऋतुराज, डाली-डाली कोयल की सुर मे...