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Monday 8 July 2019

इस हुजूम में

कौन हैं हम? न जाने इस भीड़ में क्यूं मौन हैं हम!
इक प्रश्न है हर नजर में, हर प्रश्न में गौण हैं हम,
अनुत्तरित हैं, असंख्य ऐसे प्रश्न इस हुजूम में!

चेहरा एक तेरा, एक मेरा भी है चेहरों के हुजूम में!
ढ़ोए जा रहा है, यही भीड़, तुझको और मुझको,
अन्तहीन सा दौड़ है, गुम है सब इस हुजूम में!

उदास से हैं चेहरे, उन पर बदहवासियों के हैं पहरे!
शायद, खुद का पता, खुद ही तलाशती है आँखें,
वजूद, कुछ तेरा और मेरा भी है इस हुजूम में!

अपनत्व है इक दिखावा, साथ तो है इक छलावा!
जी ले कोई अपनी बला से, या कोई मरता मरे,
इन्सानियत गिर चुका है, इतना इस हुजूम में!

कौन दावा करे? झूठा दंभ कोई क्यूं खुद पर भरे!
कभी शह, कभी मात है, वक्त की ये विसात है,
खुद ही जिन्दगी, छल चुकी है इस हुजूम में!

चेहरा एक तेरा, एक मेरा भी है चेहरों के हुजूम में!
ढ़ोए जा रहा है, यही भीड़, तुझको और मुझको,
अन्तहीन सा दौड़ है, गुम है सब इस हुजूम में!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Tuesday 18 December 2018

अभिलाषा

अलसाई सी पलकों में, उम्मीदें कई लिए,
यूँ देखता है रोज, आईना मुझे....

अभिलाषा की, इक नई सूची लिए,
रोज ही जगती है सुबह,
आशाएँ, चल पड़ती हैं इक उम्मीद लिए...

अभिलाषाओं की, इस बिसात पर,
चाल चलती है जिन्दगी,
उम्मीदें, भटकाती हैं अजनबी राहों पर....

निकल पड़ते हैं, घौसलों से विहग,
धुंधलाए से आकाश में,
समयबद्ध, प्रवाह में डोलते हुए डगमग....

थक हार, फिर लौट आती है सांझ,
गिनता है रातों के तारे,
बांझ होती हुई, उम्मीदों की टोकरी लिए...

छद्म आत्म-विभोर कराते आकाश,
सीमाविहीन सी शून्यता,
गहराती सी, रिक्तता का देती है आभास....

यथार्थ के इस अन्तिम से छोर पर,
आईने व चेहरों के बीच,
अभिलाषाएँ, हावी हैं फिर से उम्मीद पर...

खामोश चेहरा लिए, बोलता हैं आईना,
यूँ टोकता है रोज, आईना मुझे.....

Sunday 14 October 2018

मत कर इतने सवाल

कुछ तो रखा कर, अपने चेहरे का ख्याल......
मत कर, इतने सवाल!

ये उम्र है, ढ़लती जाएगी!
हर शै, चेहरों पर रेखाएँ अंकित कर जाएंगी,
छा जाएगा वक्त का मकरजाल!
मत कर इतने सवाल.....!

समय की, है ये मनमानी!
बेरहम समय ये, किस शै की इसने है मानी?
रेखाओं के ये बुन जाएगा जाल!
मत कर इतने सवाल.....!

बदलेगा, ये वक्त भी कभी!
डगर इक नई, अपनी ही चल देगा ये कभी!
वक्त की थमती नही कहीँ चाल!
मत कर इतने सवाल.....!

ले ऐनक, तू बैठा हाथों में!
रंग कई, नित भरता है तू अपनी आँखों में!
उम्र के रंगों का क्या होगा हाल?
मत कर इतने सवाल.....!

झुर्रियाँ, ले आएंगी ये उम्र!
इक राह वही, अन्तिम चुन लाएगी ये उम्र!
क्यूँ पलते मन में इतने मलाल?
मत कर इतने सवाल.....!

कुछ तो रखा कर, अपने चेहरे का ख्याल......
मत कर, इतने सवाल!

Monday 13 November 2017

बदला सा अक्श

इस दफा आईने में, बदला सा था अक्श मेरा....

न जाने वो कौन सा, जादू था भला,
न जाने किस राह, मन ये मेरा था चला,
कुछ सुकून ऐसा, मेरे मन को था मिला,
आँखों मे चमक, नूर सा चेहरा खिला।

आईना था वही, बस बदला सा था अक्श मेरा...

इस दफा, जादू किसी का था चला,
दुआ किसी की, कबूल कर गया खुदा,
नई राह थी, नया था कोई सिलसिला,
नूर लेकर यूँ, अक्श फूल सा खिला।

इस दफा आईने में, यूँ बदला सा था अक्श मेरा....

धूंध छँट चुकी, इक शख्स था मिला,
नूर-ए-खुदा शख्स के चेहरे पे था खिला,
सामने आइने के, मैं ही मगर मिला,
दूर बादलों से परे, मुझे खुदा था मिला।

इस दफा आईने में, बदला सा था अक्श मेरा....

Sunday 3 April 2016

घर

घर एक चाहतों का ले सका आज मैं,
मगर घर नही मेरा वो, जिसमें तुम न रहती हो!

घर मेरा वो जहाँ बाल तुम्हारे गीले हों,
मैं देखता हुँ आईना और तुम देख सँवरती हो,
मांग मे तेरी सिंदूर हो और सिंन्दूरी शाम ढ़लती हो,
बिंदिया की जगमगाहट तेरी माथे पे सजती हो,
घर चाहतों का वही जिसे तुम सजाती हो.......

घर मेरा वही जहाँ सपने सजते हों तेरे,
भोर के गीत बज उठते हो मधुर स्वरों में तेरे,
दिन ढ़ल जाती हो रंगीन साये में आँचल के तेरे,
गुँजती हो किलकारियाँ कई स्वरूपों के मेरे,
घर चाहतों का वही तुम सँवारती हो जिसे .......

घर वही जहाँ संग बाल सफेद हों तेरे,
गुजरते लम्हों में सफेद बाल चमकीले हों तेरे,
वक्त की बारीकियाँ झुर्रियों में उभरे तेरे,
कमजोर आँखें तेरी मदहोशियों से देखे मुझे,
घर चाहतों का ये गर जिन्दगी मे तू साथ हो मेरे......

साथ हर कदम रहे जीवन मे तू मेरे,
डूबता ही रहूँ तेरी फूल सी खुशबुओं के तले,
बंद होने से पहले ये आँखे बस देखती हों तुझे,
साँस जीवन की आखिरी बस यही पे हम संग लें,
घर मेरा वो बने जब एक दूसरे की यादों में हम पलें......

घर एक चाहतों का ले सका आज मैं,
मगर घर नही मेरा वो, जिसमें तुम न रहती हो!

Sunday 13 March 2016

झीलों के झिलमिल दर्पण में वो

नजरों मे वो, झीलों के झिलमिल दर्पण मे वो।

नजरों में हरपल इक चेहरा वही,
चारो तरफ ढूढूा करूँ पर दिखता नहीं,
झीलों के झिलमिल दर्पण मे वो,
देखें ये नजरें पर हो ओझल सी वो।

धुआँ-धुआँ वो अक्स, धूँध मे गुम हो जाए वो।

जगी ये अगन कैसी दिल में मेरे,
ख्यालों मे दिखता धुआँ सा अक्स सामने,
जाने किस धूँध में हम चलते रहे,
हर तरफ ख्यालों की धूँध मे खोया किए।

मन में वो, मन की खामोश झील में गुम सी वो।

चाँदनी सी बादलों में वो ढ़लती रहे,
झिलमिल सितारों मे उनको हम देखा करें,
आते नजर हो झीलो के दर्पण में तुम,
अब तो नजरों में तुम ही हो, जीवन में तुम।

नजरों मे तुम हो, झीलों के झिलमिल दर्पण मे तुम। 

Monday 15 February 2016

बिखरी जुल्फे

अगर वो कहें तो उनकी बिखरी लटे मैं सँवार दूँ,
झुकी हुई सी यें पलकें,जरा इनको निहार लूँ,
मद्धिम पड़ रही है चांदनी, रौशन चराग कर लूँ।

रूप उस साँवरी का अभी, जी भर के देखा नही,
अंधेरों मे अब जिन्दगी ढलती जा रही यूँहीं,
चेहरे से जुल्फें हटा दूँ, रातो मे रौशनी भर लूँ।

जज्बातों की आँधियाँ उठ रही हैं यहाँ अभी,
मुझको संभाल लो, मैं आज वश में नही,
चेहरों से उठा दूँ नकाब, रौशन अरमान कर लूँ।

पत्ते डालियों के है हरे, सूखे अभी तक ये नही,
चढ़ान पर उम्र है जिन्दगी अभी रुकी नही,
निहारता रहूँ तेरा चेहरा, संग तमाम उम्र चल लूँ।

Sunday 27 December 2015

पूछे जो कोई तुमसे

पूछे जो कोई तुमसे कौन हूँ मैं?
तुम कह देना,

एक बेगाना पागल दीवाना, 
जो अनकही बातें कई कह जाता है..!

एक धुंधला चेहरा,
 जो यादों में बस रह जाता है...!!

एक बेगाना अन्जाना,
जो जीवन दर्शन दे जाता है...!!

एक जाना पहचाना,
जो कभी-कभी बात पते की कह जाता है...!!

यूँ तो उसके होने, या फिर, 
ना होने से,
कुछ फर्क नही पड़ता जीवन पर..!!!

पूछे जो कोई तुमसे, तुम कह देना!!!!
पर क्या अपने दिल से 
तुम यही कह सकोगी??????
शायद नही........!!! कभी नही.......!!!