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Tuesday 15 October 2019

जीवन किनारे

यूँ हीं छूट जाते है, स॔गी-साथी, ये सहारे,
हाथ हमारे, जीवन किनारे!

संदली सांझ के, ये हल्के से साये,
हो जाती हैं ओझल, रंगीन सी वो राहें,
गुजर जाती हैं, निर्बाध ये डगर,
धुँधलाती सी, बढ़ जाती है ये सफर,
एकाकी से होते, एक पथ पर,
उलझी सी, अलकों,
सुनी सी, पलकों के सहारे,
जीवन किनारे!

थम जाती है ज्यूँ, सागर में नदियाँ,
यूँ थम जाती है, यौवन की साँसें यहाँ,
रोक कर, चंचल सी ये प्रवाह,
चल देती है जीवन, अपनी ही राह,
बे-खबर, बे-असर, बे-परवाह,
हो, इच्छाओं से मुक्त,
छोड़कर, अनन्त कामनाएँ,
जीवन किनारे!

अंग-अंग पर, उभरती हैं झुर्रियाँ,
ठूंठ होते हैं वृक्ष, यूँ डूबती हैं कश्तियाँ,
उम्र भर, किसने दिया है साथ?
सूख कर, झर जाते है पात-पात,
जगाती है, नैनों में तैरती रात,
काटती है, ये रौशनी,
नश्तर चुभोते है, ये तन्हाई,
जीवन किनारे!

यूँ हीं छूट जाते है, स॔गी-साथी, ये सहारे,
हाथ हमारे, जीवन किनारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Sunday 3 April 2016

घर

घर एक चाहतों का ले सका आज मैं,
मगर घर नही मेरा वो, जिसमें तुम न रहती हो!

घर मेरा वो जहाँ बाल तुम्हारे गीले हों,
मैं देखता हुँ आईना और तुम देख सँवरती हो,
मांग मे तेरी सिंदूर हो और सिंन्दूरी शाम ढ़लती हो,
बिंदिया की जगमगाहट तेरी माथे पे सजती हो,
घर चाहतों का वही जिसे तुम सजाती हो.......

घर मेरा वही जहाँ सपने सजते हों तेरे,
भोर के गीत बज उठते हो मधुर स्वरों में तेरे,
दिन ढ़ल जाती हो रंगीन साये में आँचल के तेरे,
गुँजती हो किलकारियाँ कई स्वरूपों के मेरे,
घर चाहतों का वही तुम सँवारती हो जिसे .......

घर वही जहाँ संग बाल सफेद हों तेरे,
गुजरते लम्हों में सफेद बाल चमकीले हों तेरे,
वक्त की बारीकियाँ झुर्रियों में उभरे तेरे,
कमजोर आँखें तेरी मदहोशियों से देखे मुझे,
घर चाहतों का ये गर जिन्दगी मे तू साथ हो मेरे......

साथ हर कदम रहे जीवन मे तू मेरे,
डूबता ही रहूँ तेरी फूल सी खुशबुओं के तले,
बंद होने से पहले ये आँखे बस देखती हों तुझे,
साँस जीवन की आखिरी बस यही पे हम संग लें,
घर मेरा वो बने जब एक दूसरे की यादों में हम पलें......

घर एक चाहतों का ले सका आज मैं,
मगर घर नही मेरा वो, जिसमें तुम न रहती हो!