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Friday 30 April 2021

जा, अप्रिल तू जा

झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
ओ, अप्रिल के फूल!

कटीली तेरी यादें, कठिन है भुला दें,
बोए तूने, इतने काँटे,
फूलों संग, घर-घर तूने दु:ख बाँटे,
जा, अब याद मुझे न आ,
जा, अप्रिल तू जा!

दूभर है, तुझ संग ये दिन निभ जाए,
बैरी ये पल कट जाए,
हर क्षण, कितने धोखे हमने खाए,
ना, अब सपनों में बहला,
जा, अप्रिल तू जा!

तू, क्या जाने, कुछ खो देने का, गम!
यूँ, अपनों से बिछड़न,
जीवन भर, जीवन खोने का गम,
जा, ना यूँ मन को बहला,
जा, अप्रिल तू जा!

झौंके बहुत, तूनें आँखों में धूल,
ओ, अप्रिल के फूल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday 11 January 2020

चोट

शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!

हुए बेजार, टूटे तार-तार!
टीस सी उठी, असह्य सी चोट लगी,
सर्द कोई, इक तीर सी चली,
मन ही, चीर चली,
गुजरे, वो जिधर हो के...

शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!

बार-बार, फिर वो बयार!
हिल उठी, जमीं, नींव ही ढ़ह चुकी,
खड़ी थी, वो वृक्ष भी गिरी,
बिखरे थे, पात-पात,
गुजरे, वो जिधर हो के...

शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!

टोके ना कोई, यूँ बेकार!
अपना ले, यूँ सपने तोड़े न हजार,
चोट यही, मन की न भली,
सूखी है, हर कली,
गुजरे, वो जिधर हो के...

शतदल हजार छू के, टोक गए झौंके!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday 26 January 2019

आश्वस्ति

कुछ आश्वस्त हुए, भुक-भुक जले वे दीपक....

निष्ठुर हवा के मंद झौंके,
झिंगुर के स्वर,
दूर तक, वियावान निरन्तर,
मूकद्रष्टा पहर, कौन जो तम को रोके!

भुक-भुक, वे जलते दीये,
रहे बेचैन से,
जब तक वो जिये,
संग-संग चले, निष्ठुर हवा के साये तले!

वो थी कुछ बूँद पर निर्भर,
था कहाँ निर्झर,
जलकर हुए वो जर्जर,
निर्झरिणी, सिसकती रही थी रात-भर!

जैसे थम सी गई थी रात,
जमीं थी रात,
शाश्वत तम का पहरा,
आश्वस्ति कहाँ, बुझा-बुझा था प्रभात!

दीप के हृदय में सुलगती,
कुछ तप्त बूँदें,
दे रही थी आश्वस्ति,
तम ढ़ले, रोक कर न जाने को कहती!

कुछ आश्वस्त हुए, भुक-भुक जले वे दीपक....