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Thursday 19 October 2017

बेखबर

काश! मिल पाता मुझे मेरी ही तमन्नाओं का शहर!

चल पड़े थे कदम उन हसरतों के डगर,
बस फासले थे जहाँ, न थी मंजिल की खबर,
गुम अंधेरों में कहीं, था वो चाहतों का सफर,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!

बरबस खींचती रहीं जिन्दगी मुझे कहीं,
हाथ बस दो पल मिले, दिल कभी मिले नहीं,
शख्स कई मिले, पर वो बंदगी मिली नही,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!

साहिल था सामने, बस पावों में थे भँवर,
बहती हुई इस धार में, बहते रहे हम बेखबर,
बांध टूटते रहे, टूटता रहा मेरा सबर,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!

हसरतें तमाम यूँ ही लेती रही अंगड़ाई,
कट गए उम्र तमाम, साथ आई है ये तन्हाई,
तन्हा है चाहत मेरी, तन्हा है अब ये सफर,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!

काश! मिल पाता मुझे मेरी ही तमन्नाओं का शहर!

Wednesday 27 April 2016

कहता है विवेक मेरा

कहता है हृदय मेरा, चल ख्वाहिशों का मुँह मोड़ दे तू।

तमन्नाओं की महफिल फिर जगमगाई है कहीं,
कहता है मन,
गीत कोई अधूरा सा तू गाता ले चल,
रस्मों की दम घोंटती दीवारों से,
तू बाहर निकल आ चल।

अधूरी ख्वाहिशों के शहर मे तमन्ना जागी है फिर,
कहता है दिल,
परिदें ख्वाहिशों के उड़ा ले तू भी चल,
छुपी है जो बात अबतक दिल मे,
कह दे तू भी आ चल।

महफिल ख्वाहिशों की ये, तमन्नाओं को पीने दे फिर,
कहता है विवेक,
मैं ना निकलुंगा आदर्शों की लक्ष्मन रेखा से,
तमन्ना मेरी पीकर भटके क्युँ,
चल ख्वाहिशों का मुँह मोड़ दे तू।

कहता है हृदय मेरा, विवेक की अनदेखी ना कर तू।