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Friday 27 March 2020

छल

रहे थे, करीब जितने,
हुए, दूर उतने!
मेरे पल!

काटे-न-कटते थे, कभी वो एक पल,
लगती, विरह सी, थी,
दो पल, की दूरी,
अब, सताने लगी हैं, ये दूरियाँ!
तेरे, दरमियाँ,
तन्हा हैं, कितने ही पल!

डसने लगे हैं, मुझे वो, हर एक पल,
मेरे ही पहलू में, रहकर,
मुझमें सिमटकर,
लिए, जाए किधर, जाने कहाँ?
तेरे, दरमियाँ,
होते जवाँ, हर एक पल!

करते रहे छल, मुझसे, मेरे ही पल,
छल जाए, जैसे बेगाने,
पीर वो कैसे जाने,
धीर, मन के, लिए जाए कहाँ?
तेरे, दरमियाँ,
अधूरे है, कितने ये पल!

रहे थे, करीब जितने,
हुए, दूर उतने!
 मेरे पल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday 28 November 2018

अजीब से फासले

बड़े अजीब से, हैं ये फासले....

इन दूरियों के दरमियाँ,
जतन से कहीं, 
न जाने कैसे, मन को कोई बांध ले..

अजीब से हैं ये फासले....

अदृश्य सा डोर कोई,
बंधा सा कहीं, 
उलझाए, ये कस ले गिरह बांध ले...

अजीब से हैं ये फासले....

जब तलक हैं करीबियाँ,
बेपरवाह कहीं,
याद आते हैं वही, जब हों फासले...

अजीब से हैं ये फासले....

सिमट आती है ये दूरियाँ,
पलभर में वहीं,
इन फासलों से जब, कोई नाम ले...

अजीब से हैं ये फासले....

फिर गूंजती है प्रतिध्वनि,
वादियों में कहीं,
दबी जुबाँ भी कोई, गर पुकार ले ....

अजीब से हैं ये फासले....

पैगाम ले आती है हवाएँ,
दिशाओं से कहीं,
इक तरफा स्नेह, फासलों में पले....

अजीब से हैं ये फासले....

इक अधूरा कोई संवाद,
एकांत में कहीं,
खुद ही मन, अपने आप से करे...

अजीब से हैं ये फासले....

Monday 28 August 2017

मैं और मेरे दरमियाँ

ऐ जिन्दगी, इक तू ही तो है बस, मैं और मेरे दरमियाँ!

खो सा गया हूँ मुझसे मैं, न जाने कहां!
ढूंढता हूँ खुद को मैं, इस भीड़ में न जाने कहां?
इक तू ही है बस और कुछ नहीं मेरा यहाँ!
अब तू ही है बस मैं और मेरे दरमियाँ!

ये रात है और कुछ कह रही खामोशियाँ!
बदले से ये हालात हैं, कुछ बिखर रही तन्हाईयाँ!
संग तेरे ख्यालों के, खोया हुआ हूँ मैं यहाँ!
अब तू ही है बस मैं और मेरे दरमियाँ!

सिमटते हुए ये दायरे, शाम का ये धुआँ!
कह रही ये जिन्दगी, तू ले चल मुझको भी वहाँ!
मुझसे मुझको छीनकर तुम चल दिए कहां!
अब तू ही है बस मैं और मेरे दरमियाँ!

रंगों से है भर चुकी फूलों भरी ये वादियाँ!
कोई गीत गुनगुना रही है पर्वतों की ये घाटियां!
खो सा गया हूँ मुझसे मैं यहीं न जाने कहाँ!
अब तू ही है बस मैं और मेरे दरमियाँ!

ऐ मेरी जिन्दगी, मुझको भी तू ले चल वहाँ!
जी लूँ बस घड़ी दो घड़ी, मैं भी सुकून के जहाँ!
पल दो पल मिल सकूँ मै भी मुझसे जहाँ!
ऐ जिन्दगी, इक तू ही तो है बस, मैं और मेरे दरमियाँ!

Sunday 15 May 2016

दूरियों के दरमियाँ

हमको जुदा न कर सकेंगी ये दूरियों के दरमियाँ!

हम मिलते रहे हैं हर पल यूँ दूरियों के दरमियाँ,
रीत ईक नई बनती गई दूरियों के दरमियाँ,
समय यूँ गुजरता प्रतिपल इन दूरियों के दरमियाँ !

बदल रहा ये रूप ये रंग इस समय के दरमियाँ,
न बदले हैं हम कभी इस समय के दरमियाँ,
वक्त लेता रहा करवटें तुम संग समय के दरमियाँ!

ये दूरियों के दायरे रहे उम्र भर तेरे मेरे दरमियाँ,
वक्त कभी न भर सका दूरियों के दरमियाँ,
मेरे हृदय में रहे सदा तुम इन दूरियों के दरमियाँ!

Wednesday 6 April 2016

कल मिले ना मिले

 
दरमियाँ जीवन के इन वयस्त क्षणों के,
स्वच्छंद फुर्सत के एहसास भी हैं जरूरी! ..सही है ना?

दरमियाँ इन धड़कते दिलों के,
धड़कनों के एहतराम भी हैं जरूरी !
कही खो न जाएँ यहीं पे हम,
खुद से खुद का पैगाम भी है जरूरी!

तुम सितारों मे घुमती ही रहो,
नजरों से जमीं का दीदार भी है जरूरी!
आईने मे खुद का दीदार कर लो,
तारीफ चेहरे को गैरों की भी है जरूरी!

जिन्दगी में कितना ही सफल हो,
खुशी पर अपनों की खुशी भी है जरूरी!
जिन्दगी में तुम मिलो न मिलो,
मिलते रहने की कशिश भी है जरूरी!

मौसमों की तरह रंग बदल लो,
मौसम रिमझिम फुहार के भी हैं जरूरी!
कल वक्त ये फिर मिले ना मिले,
आज जी भर के जी लेना भी है जरूरी!

दरमियाँ जीवन के इन वयस्त क्षणों के,
स्वच्छंद फुर्सत के एहसास भी हैं जरूरी! ..सही है ना?

Thursday 31 March 2016

वो ठहरा हुआ पल

वो पल अब तलक ठहरा हुआ है यहीं,
मुद्दतों से दरमियाँ ये दूरियाें के रुके हैं वहीं,
खोया है मन उस पल के दायरों में वहीं कहीं!

अपना सा एक शक्ल लगा था इस उम्र में कहीं,
सपनों मे मिलता था वो हमसे कभी-कभी,
हकीकत न बन सका सपनों का वो शक्ल कभी।

एहसास एक पल को कुछ ऐसा हुआ,
हकीकत बन के वो शक्ल सामने खड़ा मिला,
हतप्रभ सा खड़ा बस उसे मैं देखता ही रह गया।

कुछ पल को दूरियों के महल वो गिर गए,
मासूमियत पर उस शक्ल की हम फिर से मर गए,
टूटे भ्रम के महल, जब शक्ल अंजान वो लगने लगे।

वो पल अब फिर से ठहर गया है वहीं,
दरमियाँ ये दूरियाें के मुद्दतों के अब फिर हैं वहीं,
फिर से खोया है मन उस पल के दायरों में ही कहीं!

Tuesday 26 January 2016

धड़कनों की सदाएँ

किसकी सदाएँ गूँजती वादियों के दरमियाँ फिर,
धड़कने किसी की सुनाई दे रही मुझको यहाँ फिर,
क्या हृदय किसी विरहन का व्यथित हो गया है फिर?
या याद में किसी के कोई रो रहा है फिर?

ठहरो जरा संगीत धड़कनों की सुन लूँ मैं भी
अपने सुरमंदिर की तानपूरा का तार बुन लूँ मैं भी,
सुर चुरा लू दर्द का आज व्यथित हो रहा मैं भी,
या याद मे किसी की आज रो रहा हूँ मैं भी?

व्यथित हृदय की धड़कनें बेसुरी सी आज क्युँ,
भूल गए हैं लय सारे इस वीणा के तार क्युँ,
विरहन की संगीत को आज मिलते नही हैं साज क्युँ,
या याद मे विरहन की मैं बिसर गया संगीत ज्युँ?