Showing posts with label दुनियाँ. Show all posts
Showing posts with label दुनियाँ. Show all posts

Sunday 30 May 2021

जागे सपने

जाने कब से, घुप अंधियारों में,
पलकें खोले,
जागे से, सपनों को तोले,
जागा सा मैं!

शायद, सपनों के पर, 
छूट चले हों, बोझिल पलकों के घर,
उड़ चली नींद,
झिलमिल, तारों के घर,
आकाश तले, संजोए ख्वाब कई,
जागा सा मैं!

जाने, फिर लौटे कब,
शायद, तारों के घर, मिल जाए रब,
खोई सी नींद,
दिखाए, दूजा ही सबब,
पलकें मींचे, नीले आकाश तले,
जागा सा मैं!

ये, सपनों की परियाँ,
शायद, हों इनकी, अपनी ही दुनियाँ,
भूली हो नींद,
अपने, पलकों का जहाँ,
खाली उम्मीदों के, दहलीज पर,
जागा सा मैं!

जाने कब से, घुप अंधियारों में,
पलकें खोले,
जागे से, सपनों को तोले,
जागा सा मैं!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday 26 April 2016

ऐ मन तू सपने ही देख

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर.......,

तेरी भ्रम की दुनियाँ ही है अच्छी,
तू नहीं जानता सत्य मे है कितनी पीड़ा,
सत्य से अंजान तेरी अपनी ही है इक दुनिया,
जहाँ दु:ख का बोध सर्वथा नही,
दुःख हो भी तो, हो बस सपनों जैसे ही क्षणभंगूर।

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर......

सपनों मे तेरे क्या-क्या दिख जाता है,
बेगानों मे भी कोई अपना सा लग जाता है,
कष्ट-विषाद के कण हो जाते हैे धुमिल,
ऐ मन, इन क्षणिक एहसासों को बांधे रख तू खुद में,
ताकि मै भी कर पाऊँ सुख बोध कुछ इनके पल भर।

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर........

काश, कभी टूटते ना मन के ये सपने,
इन्सानों के मन मे हरपल फूटते नए इक सपने,
गम के इन अंकुरों से होते सदा हम अंजाने,
विछोह विषाद के ये पल जीवन से होते बेगाने,
हर दिल में बहते वसुधैव कुटुम्बकम के ही बस झरने।

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर........

Friday 1 April 2016

ये अलग बात है कि...!

ये अलग बात है कि.............

दुनियाँ की इस भीड़ मे एक हम भी हैं,
ये अलग बात है कि हम दिखते नही हैं इस भीड़ में।

अंजान शक्लों के ढ़ेर सी है ये दुनियाँ,
ये अलग बात है कि हम ढ़ूंढ़ते है कोई अपना यहाँ ।

अलग अलग से शक्ल हैं इस भीड़ में,
कौन किसको देखता है यहाँ अंजान सी इस भीड़़ में।

उतरे हुए से शक्ल हर शख्श के हैं यहाँ,
अपना कोई मिल गया तो खिल जाते हैं चेहरे यहाँ ।

नाम रिश्तों का देकर भूल जाते है सब,
ये अलग बात है कि हम रिश्ते निभा रहे हैं अबतक।

मतलब की बात न हो तो सुनते कहाँ हैं सब,
ये अलग बात है कि हम यहाँ सुने जा रहे बेमतलब।

इस भीड़ की तन्हाईयों मे घुट चुके हैं दम,
ये अलग बात है कि अब तलक यहाँ जी रहे हैं हम।

ये अलग बात है कि.............

Saturday 6 February 2016

दहलीज पर कदम

दहलीज पर रखती कदम,
हसींन उम्मीदों की डोर संग,
मृदुल साँसें हृदय में बाँधे,
क्यारियों सी खुद को सजाए,
आँचल में कुछ याद छुपाए।

दहलीज वही जीवन की,
नेपथ्य की गूँज अब वहाँ नहीं,
समक्ष भविष्य की आवाजें,
दीवारों में चुनी हुई कुछ सांसें,
तू सोचती क्या आँचल फैलाए।

इक नई दुनियाँ यह तेरी,
करनी है रचना खुद तुमको ही,
बिखेरनी है खुशबु अपनी,
रंग कई भरने हैं तुझको ही,
दहलीज कहती ये दामन फैलाए।