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Monday 8 July 2019

बहल जा दिल

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

नाराज है क्यूं, दूर बैठा  क्यूं ऐसे आज है तू?
माना, बस दिखावे की, यहाँ है दिल्लगी,
मिठास बस बातों में है, पर हर बात में है ठगी,
कुछ ऐसी ही है, वश में कहाँ है जिन्दगी?

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

है ये कैसी बेरुखी, तू इतना भी, क्यूं है दुखी?
साथ तेरे, हाथ थामे, चल रही है जिन्दगी,
तू जरा ये जाम ले, खुद को जरा सा थाम ले,
हँस ले जरा, चाहे जितना सताए जिन्दगी!

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

है तुझे क्या वास्ता, गर, कोई बदल ले रास्ता?
मान ले, हर पल, जिन्दगी है इक हादसा,
है ये मयखाना, कहाँ टूटे पैमानों से है वास्ता,
अजीब रंग कितने, दिखाएगी ये जिन्दगी!

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

माना, हिस्से में तेरे, अजीबोगरीब है किस्से!
फूल चुनने हैं तुझे, राहों के इस शूल से,
सीखनी है बन्दगी, बिखरे हुए इस धूल से,
हर भूल से, कुछ तो सिखाएगी जिन्दगी!

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Wednesday 2 March 2016

उपेक्षित मन

रखा था मैंनै सहेज कर मन को,
उस दरवाजे के पीछे लाल दराज में,
जाने कहाँ गुम आज सुबह से वो,
दिखाई देता नही क्या नाराज वो?

कुछ कहा सुनी हुई नही मन से,
जाने किसने छेड़ा आज उस मन को,
दुखा होगा शायद दिल उसका भी,
पहले तो ना था इतना नासाज वो!

कल जब की थी उससे मैने बातें,
तब खुश बड़ा दिख रहा था मन वो,
आज अचानक है बीती उसपे क्या?
बंद पड़ी आज क्यों आवाज वो?

मन का हृदय भी होता है शायद!
बात चुभी है क्या कोई उसको?
या फिर संवेदना जग गई है उसकी!
समझ सका नहीं मैं आवाज मन की?

जैसे तैसे रख छोड़ा था मैंने उसको ही,
लाल दराज के कोने मे दरवाजे के पीछे ही,
सुध मैने ही ली नही कभी उसकी,
उपेक्षा मेरे ही हाथों से हुई आज मन की?

ओह ये क्या? मन तो यहीं पड़ा है!
तकिए के नीचे शायद कुचल गया वो,
आवाज रूंध चुकी है थोड़ी उसकी,
कम हो रही रफ्तार मन के सांसों की!

मन तो है मतवाला करता अपने मन की,
मन की ना सुनो तो ये सुनता कहाँ किसी की,
मन दिखलाता आईना आपके जीवन की,
विकल होने पहले सुन लो तुम साज इस मन की!