Showing posts with label पुल. Show all posts
Showing posts with label पुल. Show all posts

Thursday 29 June 2017

उजड़ा हुआ पुल

यूँ तो बिसार ही चुके हो अब तुम मुझे!
देख आया हूँ मैं भी वादों के वो उजरे से पुल,
जर्जर सी हो चुकी इरादों के तिनके,
टूट सी चुकी वो झूलती टहनियों सी शाखें,
यूँ ही भूल जाना चाहता है अब मेरा ये मन भी तुझे!

पर इक धुन! जो बस सुनाई देती है मुझे!
खीचती है बार बार उजरे से उस पुल की तरफ,
टूटे से तिनकों से ये जोड़ती है आशियाँ,
रोकती है ये राहें, इस मन की गिरह टटोलकर ,
बांधकर यादों की गिरह से, खींचती है तेरी तरफ मुझे!

कौंधती हैं बिजलियाँ कभी मन में मेरे!
बरस पड़ते हैं आँसू, आँखों से यूँ ही गम में तेरे,
नम हुई जाती है सूखी सी वो टहनियाँ,
यादो के वो घन है अब मेरे मन के आंगन,
कोशिशें हजार यूँ ही नाकाम हुई है भूलाने की तुझे!

इस जनम यूँ तड़पाया है तेरे गम ने मुझे!
बार-बार, हर-बार तेरी यादों ने रुलाया है मुझे,
खोल कर बाहें हजार मैने किया इन्तजार,
पर झूठे वादों ने तेरे इस कदर सताया है मुझे,
अब न मिलना चाहुँगा, कोई जनम मैं राहों में तुझे !