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Saturday 27 October 2018

चाँद तक चलो

ओ प्रियतम, चाँद तलक तुम साथ चलो...

नभ को लो निहार तुम,
पहन लो, इन बाँहों के हार तुम,
फलक तक साथ चलो,
एक झलक, चाँद की तुम भर लो!

ओ प्रियतम, चाँद तलक तुम साथ चलो...

प्राणों का अवगुंठण लो,
इस धड़कन का अनुगुंजन लो,
भाल जरा इक अंकन लो,
स्नेह भरा, मेरा ये नेह निमंत्रण लो!

ओ प्रियतम, चाँद तलक तुम साथ चलो...

यूं हुआ जब मैं निष्प्राण,
बिंधकर उस यम की सुईयों से,
भटके दर-दर तुम कहते,
पिय वापस दे दो, यम सूई ले लो!

ओ प्रियतम, चाँद तलक तुम साथ चलो...

ये झौंके हैं शीत ऋतु के,
ये शीतल मंद बयार मदमाए से,
ये अंग प्रत्यंग सिहराए से,
ये उन्माद, महसूस जरा कर लो!

ओ प्रियतम, चाँद तलक तुम साथ चलो...

सिहरन ले आया समीर,
तुम संग चलने को प्राण अधीर,
पग में ना अब कोई जंजीर,
हाथ धरो, प्रिय नभ के पार चलो!

ओ प्रियतम, चाँद तलक तुम साथ चलो...

Wednesday 17 February 2016

सूखा पत्ता


गिरा डाल से टूट कर इक सूखा पत्ता,
अस्तित्व अपने बिंब की तलाशता वो सूखा पत्ता!

जीता था जिन्दगी कभी वो झूमकर,
कोमल मृदुल एहसास सासों में लेकर, 
हौसले बुलंद उमड़ते अरंमानों पे चढ़कर,
झंझावात आँधियों की चली ये कैसी,
टूटकर डाली से बिखरा वो पत्ता।

अस्तित्व अपने बिंब की तलाशता वो सूखा पत्ता!

बिछड़ गया वो अपने प्रियतम से,
क्षुधा प्यास पिपास मिटती थी जिससे,
जीवन की अटूट गाँठ जुड़ी थी जिस वृक्ष से,
रो रहा शायद मन आज उस वृक्ष का भी,
प्रीत की डोर टूटी थी उस पत्ते की।

गिरा डाल से टूट कर वो सूखा पत्ता,
अस्तित्व अपने बिंब की तलाशता वो सूखा पत्ता!