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Wednesday 27 July 2016

जरा सुनो ये धड़कनें

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

कहती हैं क्या ये पागल सी धड़कनें,
इसकी टूटी तारों को फिर छेड़ा है किसने,
काबू में क्युँ अब ना ये धड़कने,
धक-धक धड़के हैं ये क्युँ फिर कल से,
तकती हैं अब ये नजरें किस अजनबी की राहें......

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

धुन नई नवेली कब से सीखा है इसने,
किस धुन पर ये गाता कुछ तराने अनसुने,
जादू हैं कैसे इन अलबेले बोलों में,
डूबा-डूबा सा है यह किन ख्यालों में कल से,
गूँजी है अब गीत धड़कन के ये किन सदाओं में....

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

अंजानी राहों में ये फिर लगा बहकने,
बहके-बहके से हैं अब हालात इस दिल के,
सुनता कब मेरी ये रोकुँ मै इसे कैसे,
कुछ भी न था पहले, ये हालात हैं बस कल से,
बहकी है क्युँ अब ये, बेकाबु है अब क्युँ ये धड़कने.....

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....