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Thursday 20 December 2018

ढूंढ लें खुद को

कब तलक, बिसार दें खुद को!
चल कहीं, अमराइयों में ढूंढ लें खुद को....

मैं! न जाने मुझमें हूँ कहाँ?
इस भीड़ में, अस्तित्व मेरा है कहाँ?
तड़प है, घुटन है हर तरफ यहाँ,
इशारे, कर रही है रानाईयाँ,
चल कहीं, रानाईयों में ढूंढ लें खुद को....

कलियाँ, चटकती है जहाँ!
खुश्बू, हवाओं में बिखरती है जहाँ!
प्रशस्त साँसें, खुलती हैं जहाँ!
फैलाती हों दामन वादियां,
चल कहीं, वादियों में ढूंढ लें खुद को....

छू लेगी तन, जब मीठी पवन,
गुद-गुदाएगी तन, हलकी सी छुअन,
मिल लूंगा तब, मैैं खुद से वहाँ,
बातें चंद कर लेंगी तन्हाईयाँ,
चल कहीं, तन्हाईयों में ढूंढ लें खुद को....

मैं कहूँ! खुद की सुन सकूँ!
मन की अपने, कही कुछ पढ़ सकूँ,
लिख सकूँ, कर सकूँ कुछ बयाँ,
मैं भी खिला लूँ अमराइयाँ,
चल कहीं, अमराइयों में ढूंढ लें खुद को....

झूठ ही, कब तलक बिसार दें खुद को....

Thursday 29 June 2017

उजड़ा हुआ पुल

यूँ तो बिसार ही चुके हो अब तुम मुझे!
देख आया हूँ मैं भी वादों के वो उजरे से पुल,
जर्जर सी हो चुकी इरादों के तिनके,
टूट सी चुकी वो झूलती टहनियों सी शाखें,
यूँ ही भूल जाना चाहता है अब मेरा ये मन भी तुझे!

पर इक धुन! जो बस सुनाई देती है मुझे!
खीचती है बार बार उजरे से उस पुल की तरफ,
टूटे से तिनकों से ये जोड़ती है आशियाँ,
रोकती है ये राहें, इस मन की गिरह टटोलकर ,
बांधकर यादों की गिरह से, खींचती है तेरी तरफ मुझे!

कौंधती हैं बिजलियाँ कभी मन में मेरे!
बरस पड़ते हैं आँसू, आँखों से यूँ ही गम में तेरे,
नम हुई जाती है सूखी सी वो टहनियाँ,
यादो के वो घन है अब मेरे मन के आंगन,
कोशिशें हजार यूँ ही नाकाम हुई है भूलाने की तुझे!

इस जनम यूँ तड़पाया है तेरे गम ने मुझे!
बार-बार, हर-बार तेरी यादों ने रुलाया है मुझे,
खोल कर बाहें हजार मैने किया इन्तजार,
पर झूठे वादों ने तेरे इस कदर सताया है मुझे,
अब न मिलना चाहुँगा, कोई जनम मैं राहों में तुझे !