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Monday 8 July 2019

बहल जा दिल

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

नाराज है क्यूं, दूर बैठा  क्यूं ऐसे आज है तू?
माना, बस दिखावे की, यहाँ है दिल्लगी,
मिठास बस बातों में है, पर हर बात में है ठगी,
कुछ ऐसी ही है, वश में कहाँ है जिन्दगी?

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

है ये कैसी बेरुखी, तू इतना भी, क्यूं है दुखी?
साथ तेरे, हाथ थामे, चल रही है जिन्दगी,
तू जरा ये जाम ले, खुद को जरा सा थाम ले,
हँस ले जरा, चाहे जितना सताए जिन्दगी!

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

है तुझे क्या वास्ता, गर, कोई बदल ले रास्ता?
मान ले, हर पल, जिन्दगी है इक हादसा,
है ये मयखाना, कहाँ टूटे पैमानों से है वास्ता,
अजीब रंग कितने, दिखाएगी ये जिन्दगी!

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

माना, हिस्से में तेरे, अजीबोगरीब है किस्से!
फूल चुनने हैं तुझे, राहों के इस शूल से,
सीखनी है बन्दगी, बिखरे हुए इस धूल से,
हर भूल से, कुछ तो सिखाएगी जिन्दगी!

चल बहल जा, यूं ही बातों से, ऐ मेरे दिल....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Thursday 5 May 2016

वो भूली सी दास्ताँ

भूली सी इक दास्ताँ बन के रह गए हैं अब वो,
यादों में हर पल कभी शुमार रहते थे जो,
कभी अटकती थी वक्त की सुईयाँ जिनकी याद में,
अब अन्जाने से शक्लों में शुमार हो चुके हैं वो।

न जाने क्युँ बेरुखी उनकी बढ़ी कुछ इस कदर,
उन रास्तों से हम, अन्जान से हो चले हैं अब,
अब है मेरी इक अलग दुनियाँ, बेखबर से हुए हैं हम, 
बाकि रही इक कसक, रूठे हैं वो क्युँ अब तलक।

रूठने की वजह, कह भी देते वो मुझको अगर,
बेरुखी की रास्तों पर, वो न होते हमसफर,
खामोशं दिल की महफिलों के, वो न होते रहगुजर,
भूली हुई सी दास्ताँ में, वो न करते कहीं बसर।