Showing posts with label मंजिल. Show all posts
Showing posts with label मंजिल. Show all posts

Sunday 7 June 2020

अरमानों के तारे

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

पहुँच से दूर रखकर, सो रहा वो बेखबर,
मान लूँ कैसे, वो है रहबर!
असीम इक्षाएं जगी हैं,
मन में कितनी आशाएं, दबी हैं,
एहसास, जागे हैं सारे!

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

मैं, पी ना पाया, अपनी आहों का प्याला,
दूर कितना, है वो उजाला!
कँपकपाते, ये अधर हैं,
अंधेरों में, लड़खड़ाए से स्वर हैं,
बेसुरे हैं, ये गीत सारे!

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

यूँ तो, बड़े ही खूबसूरत हैं एहसास उसके,
पर जाऊँ कैसे, पास उसके,
मुश्किल सा, ये सफर है,
शायद वो, रहबर ही बेखबर है,
डगमगाए हैं, आस सारे!

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

शहर अरमानों के, वो बसे हैं आसमां पर,
ढूंढते हम, जमीं पर दर-बदर,
पर, अभी तो दोपहर है,
उस रात तक, किसको सबर है,
मंजिल से, अंजान सारे!

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday 8 March 2018

बहती जमीं

बहते से रास्तों पर, मंजिल को ढॣंढता हूं मैं...
आए न हाथ जो, सपने वही ढॣंढता हूं मैं...

आरजुओं के गुल ढूंढता हूं मैं,
बहती सी इस जमीं पर,
शहर-शहर मन्नतों के घूमता हूं मैं....

बस इक धूल सा उड़ता हूं मै,
इन्ही फिजाओं में कहीं,
बेवश दूर राहों पे भटकता हूं मैं.....

इक वो ही निशान ढूंढता हूं मैं,
बह रही जो रास्तों पर,
ख्वाहिशों के मुकाम ढॣंढता हूं मैं...

बहते से रास्तों पर, मंजिल को ढॣंढता हूं मैं...
आए न हाथ जो, सपने वही ढॣंढता हूं मैं...

Thursday 1 March 2018

मंजिल

मंजिल तेरी, इसी राह आएगी निकल....
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

क्यूं खोए है करार तू?
क्यूं यहाँ गम से है बेजार तू?
न राई का बना पहाड़ तू,
बस एक ही तो मेरा यार तू......
न जिंदगी बेकार कर!
न गम का तू कहीं इजहार कर!
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

तू मुझसे मन का करार ले,
एक नया ऋंगार ले,
हर गम तू मुझपे वार ले,
पर यूं फैसले न तू हजार ले......
न आँहें हजार भर,
न शिकवे तू कहीं हजार कर!
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

कल यूं पशेमाँ न होना पड़े,
तू काहे को ऐसा करे?
पल-पल जो यूं आँहें भरे,
राहें बदल बेजार खुद को करे.....
न यूं फैसले बदल!
कर के वादा कोई तू न बदल!
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

बेशक न मुझको भी है खबर,
कि मंजिल तेरी है किधर!
इक राह पर बेखबर,
यूं ही चलना है तुझको मगर......
रुक जाए ना ये सफर!
यहीं है कहीं तेरे मन का शहर!
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

मंजिल तेरी, इसी राह आएगी निकल....
ऐ बेकरार दिल! तू चल, आ मेरे साथ चल!

Thursday 19 October 2017

बेखबर

काश! मिल पाता मुझे मेरी ही तमन्नाओं का शहर!

चल पड़े थे कदम उन हसरतों के डगर,
बस फासले थे जहाँ, न थी मंजिल की खबर,
गुम अंधेरों में कहीं, था वो चाहतों का सफर,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!

बरबस खींचती रहीं जिन्दगी मुझे कहीं,
हाथ बस दो पल मिले, दिल कभी मिले नहीं,
शख्स कई मिले, पर वो बंदगी मिली नही,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!

साहिल था सामने, बस पावों में थे भँवर,
बहती हुई इस धार में, बहते रहे हम बेखबर,
बांध टूटते रहे, टूटता रहा मेरा सबर,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!

हसरतें तमाम यूँ ही लेती रही अंगड़ाई,
कट गए उम्र तमाम, साथ आई है ये तन्हाई,
तन्हा है चाहत मेरी, तन्हा है अब ये सफर,
बस ढूंढता ही रहा, मैं मेरी तमन्नाओं का शहर!

काश! मिल पाता मुझे मेरी ही तमन्नाओं का शहर!

Friday 14 April 2017

कुछ कदम और

साँस टूटने से पहले कुछ कदम मैं और चल लूँ,
मंजिलों के निशान बुन लूँ,
कांटे भरे हैं ये राह सारे,
कंटक उन रास्तों के मैं चुन लूँ,
बस कुछेक कदम मैं और चल लूँ......

आवाज मंजिलों को लगा लूँ,
मूक वाणी मैं जरा मुखर कर लूँ,
साए अंधेरों के हैं उधर,
मशालें उजालों के मैं जला लूँ,
बस कुछेक कदम मैं और चल लूँ......

ज्ञान की मूरत बिठा लूँ,
अज्ञानता के तिमिर अंधेरे मिटा लूँ,
बेरी पड़े हैं विवेक पे,
मन मानस को मैं जरा जगा लूँ,
बस कुछेक कदम मैं और चल लूँ......

दर्द गैरों के जरा समेट लूँ,
विषाद हृदय के मैं जरा मिटा लूँ,
अब कहाँ धड़कते हैं हृदय,
हृदय को धड़कना मैं सीखा लूँ,
बस कुछेक कदम मैं और चल लूँ......

प्रगति पथ प्रशस्त कर लूँ,
मुख बाधाओं के मैं निरस्त कर लूँ,
चक्रव्युह के ये हैं घेरे,
व्युह भेदन के गुण सीख लूँ,
बस कुछेक कदम और चल लूँ......

साँस टूटने से पहले बस कुछ कदम मैं और चल लूँ।

Tuesday 27 September 2016

सफर

अंजाने से इस सफर की,
कौन जाने अनिश्चित सी मंजिल है किधर,
भीड़ मे जीवन के सफर की,
क्युँ तन्हा सा उपेक्षित ये मन है इधर,
फुर्सत किसे, सुने कौन किसी की,
चल रहे हम इस सफर में, पत्धरों का है ये शहर।

तलाश में सब मंजिलों की,
न कोई है यहाँ पर किसी का हमसफर,
सफर में हैं सबकी साँसें थकी,
ये रास्ते न जाने हमको लिए जा रहे हैं किधर,
थिरकते हैं हम, यहाँ धुन पर किसी की,
अंजाना सा इक शक्ल, तलाशती हैं सबकी नजर।

पड़ाव कैसी है यह उम्र की,
अभी अधूरा सा लगता है क्यूँ ये सफर,
लिए हसरतें निगाहें यार की,
ढूंढता है दिल हरपल बस वही इक नजर,
इन्तहाँ हो चुकी, अब तो तलाश की,
तन्हा ये सफर, काट लेंगे हम जीवन के रास्तों पर।

Wednesday 8 June 2016

प्रशस्त प्रखर मंजिल

क्षितिज को निहार तू, विस्तृत जरा आयाम कर,
विशाल सोंच को बना, मन की गगन का विस्तार कर,
प्रतिभा की चाँदनी से, आसमाँ में प्रकाश भर,
क्षितिज की आगोश में, मंजिल का तू विस्तार कर।

मंजिलों से आगे, कितने ही मुकाम हैं बाँकी,
अभी तो जिन्दगी के, यहाँ किस्से तमाम हैं बाँकी,
हसरतों के पंखों को, तू जरा फैला कर देख,
इन बादलों से उपर, अभी कई आसमाँ हैं बाँकी।

यह नहीं मंजिल तेरी, प्रहर है यह विराम की,
ठहर इक पल जरा, मंजिल प्रशस्त कर अपनेे मार्ग की,
कर्म की लाठी हाथों मे ले, निरस्त तू बाधाओं को कर,
दिखेगी तुझको राह नई, मंजिलें हो जाएंगी प्रखर।

विश्राम तो बस मौत है, गतिशील हैं राहें यहाँ,
मंजिलों से बेखबर, जीवन की अनगिनत चाहें यहाँ,
कुशाग्र प्रखर रौशनी में, राह तू खुद अपनी बना,
इन मंजिलों के आगे कहीं, तू छोड़ जा अपने निशां।

Saturday 9 April 2016

इस सफर की मंजिल

उम्र के सफर की इस पड़ाव पर कौन सी मंजिल है ये?

कट चुकी आधी सफर, सिर्फ आधी ही बची,
ये किस मुकाम पर ले चली, आज मुझको ये जिन्दगी,
ये सफर है कौन सी, मंजिल है क्यों अंजान सी?

क्या अंधेरा ही मिलेगा, जिन्दगी की मंजिलो पर?
रुक कर सोचता यही है मन, जीवन के इस पड़ाव पर,
हासिल अनुभव हजार, पर मंजिलों से क्युँ बेखबर?

संग ले चलूँ मै कुछ दिए,अंजानी उन मंजिलों पर,
कुछ उजाले भर सकुँ मैं, इक दीप बन के मंजिलों पर,
अंजानी रही है ये सफर, मंजिल न हो अंजानी मगर!

उम्र के इस सफर की, हमसफर मेरी मंजिल वही,
हमसफर की तलाश में, भटकते रहे सारी उम्र युँ हीं,
गुजरुँ इन राहों से मैं, रह जाऊँ यादों में आपकी!

Monday 28 March 2016

साहिलों से भटकी लहर

इक लहर भटकी हुई जो साहिलों से,
मौज बनकर भटक रही अब इन विरानियों में,
अंजान वो अब तलक अपनी ही मंजिलों से।

सन्नाटे ये रात के कटते नही हैं काटते,
मीलों है तन्हाईयाँ जिए अब वो किसके वास्ते,
साहिलों का निशाँ दूर उस लघु जिन्दगी से।

सिसकियों से पुकारती साहिल को वो दूर से,
डूबती नैनों से निहारती प्रियतम को मजबूर सी,
खो गई आवाज वो अब मौज की रानाईयों में।

इक लहर वो गुम हुई अब समुंदरों में,
मौज असंख्य फिर भी उठ रही इन समुंदरों में,
प्राण साहिल का भटकता उस प्रियतमा में।

पुकारता साहिल उठ रही लहरों को अब,
आकुल हृदय ढूंढता गुम हुई प्रियतमा को अब,
इंतजार में खुली आँखें हैं उसकी अब तलक।

टकरा रही लहर-लहर सागर हुई वीरान सी,
चीरकर विरानियों में गुंजी है इक आवाज सी,
तम तमस घिर रहे साहिल हुई उदास सी।

वो लहर जो लहरती थी कभी झूमकर,
अपनी ही नादानियों में कहीं खो गई वो लहर,
मंजिलों से दूर भटकी प्यासी रही वो लहर।

Friday 26 February 2016

मंजिलें और हैं!

अवकाश नौकरी से मिली, जिन्दगी से नहीं,
जिन्दगी तो अब शुरू, थके मेरे कदम नहीं।

अभी थका नहीं हूँ मैं, उमर अभी ढ़ली नहीं,
बढ़ती हुई दीवानगी, उम्र की अभी शुरू हुई।

थक जाते हैं वो, जिनमें चाह जीने की नहीं,
रुक जाते हैं वो कदम, लड़खड़ाते जो नहीं।

जीवन की मुश्किलों से, जो कभी लड़ा नहीं,
थक गया वो शख्स, जो राह टेढ़ी चढ़ा नहीं।

थकते नहीं वे कदम, हिम्मत जिनके पास है,
मंजिलों पे पहुचोगे तुम, हौसला गर साथ है।

नसें अभी है तनीं हुई, वानगी अभी शुरू हुई,
सपने अधूरे जो मेरे, बनेगी वो हकीकत मेरी।

Monday 22 February 2016

कर्मपथ की ओर

तू नैन पलक अभिराम देखता किस ओर,
देख रहा वो जगद्रष्टा निरंतर तेरी ओर,
इस सच्चाई से अंजान तू देखता किस ओर।

तू कठपुतली है मात्र उस द्रष्टा के हाथों की,
डोर लिए हाथों मे वो खीचता बाँह तुम्हारी,
सपनों की अंजान नगर तू देखता किस ओर।

निरंकुश बड़ा वो जिसकी हाथों में तेरी डोरी,
अंकुश रखता जीवन पर खींचता डोर तुम्हारी,
उस शक्ति से अंजान तू सोचता किस ओर।

कर्मों के पथ का तू राही नैन तेरे उस ओर,
कर्मपथ पर निश्छल बढ़ता चल कर्मों की ओर,
मिल जाएगी तेरी मंजिल उस द्रष्टा की ओर।

Saturday 13 February 2016

स्वर नए गीत के गा

धीर रख! स्वर नए गीत के गा, चल मेरे साथ अब।

रहता था आसमाँ पर एक तारा यही कहीं,
गुजरा था टूट कर एक तारा कभी वहीं,
मिलते नही वहाँ उनकी कदमों के निशान अब,
रौशनी है प्रखर, पर दिखती नही राह अब।

भटक रहे हैं हम किन रास्तों पे अब?
दिखते नही दूर तक मंजिलों के निशान अब,
अंतहीन रास्तों मे भटका है अब कारवाँ,
बिछड़ी हुई हैं मंजिले, भटकी हुई सी राह अब।

बेसुरी लय सी रास्तों के गीत सब,
बजती नही धुन कोई भटकी हुई राहों में अब,
आरोह के सातों स्वर हों रहे अवरुद्ध अब,
धीर रख! स्वर नए गीत के गा, चल मेरे साथ अब।