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Tuesday 11 May 2021

दिल, न दूँगा उधार

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

कौन खोए, चैन अपना!
बिन बात देखे, दिन रात सपना,
फिर उसी से, ये मिन्नतें,
करे हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

बेवजह ही, ये ख़्वाहिशें!
हर पल, कोई ख्वाब ही, ये बुने,
कोई काँच से, ये महल,
टूटे हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

मिली हैं, कितनी ठोकरें!
यूँ किसी, शतरंज की हों मोहरें,
जैसे चाल, वो चल गए,
कई हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

दूँ भी तो, फिर क्यूँ भला!
ये उधार, वापस ही कब मिला!
बिखर न जाएँ, धड़कनें,
मेरे हजार!

भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday 15 April 2016

तन्हाई के ख्याल

मैं और मेरा मन, तन्हाई मे जाने किन ख्यालो के संग?

ख्यालों के निर्झर सरिता मे वो बहती,
कलकल छलछल पलपल हरपल वो करती,
जाने किन शिखरों से चलकर वो आती,
झिलमिल सांझ ढ़ले किस सागर में मिल जाती,
ख्यालों के विरान महल में बस मैं और मेरी तन्हाई।

टकराती रह रह कर हृदय के इस तट पर,
शिलाओं सा टूटता रहता मैं तिल तिल घिस-घिस कर,
यादों के सैकत बिछ जाते हृदय के तल पर,
गहरा सा मन मेरा शिलाचूर्ण से फिर जाता भर,
कभी रुक जाते वो झील सी ख्यालों में बह बहकर।

खिल उठती कमल सी वो उस ठहरी झील मे,
समेटती अपनी चंचलता पलभर को अपने मन में,
बिखेरती वो सुंदर सी आभा उस उपवन में,
सपनों का वो घन सदियों से मेरे मन प्रांगण में,
इक ख्याल बन कर उभरता हर पल मेरी तन्हाई में।

मैं और मेरा मन, तन्हाई मे जाने किन ख्यालो के संग?

Thursday 31 March 2016

वो ठहरा हुआ पल

वो पल अब तलक ठहरा हुआ है यहीं,
मुद्दतों से दरमियाँ ये दूरियाें के रुके हैं वहीं,
खोया है मन उस पल के दायरों में वहीं कहीं!

अपना सा एक शक्ल लगा था इस उम्र में कहीं,
सपनों मे मिलता था वो हमसे कभी-कभी,
हकीकत न बन सका सपनों का वो शक्ल कभी।

एहसास एक पल को कुछ ऐसा हुआ,
हकीकत बन के वो शक्ल सामने खड़ा मिला,
हतप्रभ सा खड़ा बस उसे मैं देखता ही रह गया।

कुछ पल को दूरियों के महल वो गिर गए,
मासूमियत पर उस शक्ल की हम फिर से मर गए,
टूटे भ्रम के महल, जब शक्ल अंजान वो लगने लगे।

वो पल अब फिर से ठहर गया है वहीं,
दरमियाँ ये दूरियाें के मुद्दतों के अब फिर हैं वहीं,
फिर से खोया है मन उस पल के दायरों में ही कहीं!