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Monday 29 January 2024

मृत्यु या मोक्ष

कसता ही जाए, इक आगोश,
मृत्यु या मोक्ष!

कुछ आशा,
कुछ निराशा के, ये कैसे पल!
बस होनी है, इक,
या आवागमन, या कोई घटना,
कुछ घटित, कुछ अघटित,
हो जाए समक्ष,
या परोक्ष!

कसता ही जाए, इक आगोश,
मृत्यु या मोक्ष!

टलता कब,
सहारे उस रब के, रहता सब,
ये उम्र, ढ़ले कब,
घेरे सांसों के, जाने टूटे कब!
और मोह रुलाए पग-पग,
परे, जीवन के,
दूजा पक्ष!

कसता ही जाए, इक आगोश,
मृत्यु या मोक्ष!

सजग निशा,
सुलग-सुलग, बुझ जाती उषा,
यूं चलता ही जाए,
निरंतर काल-चक्र का पहिया,
उस ओर, जहां है क्षितिज,
या, अंतिम इक,
काल-कक्ष!

कसता ही जाए, इक आगोश,
मृत्यु या मोक्ष!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday 2 April 2016

धुन एक ही

यह शरीर नश्वर तर जाए भव सागर जीवन की!

धुन एक ही लगी बस सागर पार जाने की,
तड़ जाऊँ सब बाधा विघ्न दुनियाँ की,
जोगी सा रमता मन धुन बस रम जाने की।

मन मस्त कलंदर बावरा दिल रमता जोगी,
लगन लगी अथाह सागर तर जाने की,
कागद के टुकड़ों सा तन बस गल जाने की।

धुन में रमता मन परवाह नही कुछ तन की,
पल आश-निराश के समय अवसान की,
पल पल गलता जीवन हिमखंड शिलाओं सी।

शरण आया तेरे ईश्वर आस लिए मोक्ष की,
कुछ बूँद छलका दे अपनी अनुकंपा की,
ये शरीर नश्वर तर जाए भव सागर जीवन की।

Saturday 26 March 2016

संबंधों का कर्ज मोक्ष पर भारी

धागे ये संबंधों के जुड़े स्नेह की गांठो से,
कब कैसे जुड़ जाते ये बंधन साँसों की झंकारों से,
ममतामयी स्पर्श स्नेहिल मधुर इन गाँठों का,
धागे ये कच्चे पर बंधन अटूट ये जन्मों-जन्मों का।

अनगिनत संबंध जीवन के भूले बिसरे से,
जीवन की आपाधापी में तड़पते कुचले-मसले से,
विरह की टीस सी उठती फुर्सत के क्षण में,
गतिशीलता जीवन की भारी स्नेह, दुलार, ममता पे।

आधार स्तम्भ जीवन के, संबंधों के दायरे यही,
कितने ही स्नेहमयी गोदों में नवजात मुस्कुराते यहीं,
कर्ज भारी इन संबंधों का ढ़ोते जीवन भर यहीं,
क्या उरृण हो पाऊँगा इस कर्ज से, मैं सोचता यही?

कर्ज इस बंधन का शायद जीवन पर है भारी,
जन्मों का यह चक्र मानव के कर्ज चुकाने की तैयारी,
गरिमामयी संबंधों को फिर से जीने की यह बारी,
मोह संबंधों के स्नेहिल बंधन के मोक्ष पर है मेरी भारी।

Sunday 10 January 2016

जीवन संघर्ष

जीवन तेरा नित संघर्षमय,
राहें तेरी अनवरत संघर्ष की,
धैर्य साहस से तू कर संघर्ष,
यही राह तेरे उत्कर्ष की।

शिखर पर आरूढ़ होने को,
चरमोत्कर्ष पर चढ़ जाने को,
निष्ठा लगन से तू कर संघर्ष,
यही पंथ तेरे निष्कर्ष की।

बाधाएँ फिर भी घेरेंगी तुझको,
तेरे अपने ही रोकेंगे तुझको,
अपनों से ही है तेरा संघर्ष,
यही संघर्ष तेरे मोक्ष की।