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Monday 11 January 2016

वो यतीम बच्चा

वो दूधपीता बच्चा,
वह छोटा मासूम सा,
नन्हीं टांगों से बेपरवाह,
अटखेलियाँ करता,
स्टेशन के दूसरे किनारे पर,
आती जाती ट्रेन को देख,
कभी थोड़ा खुश हो जाता,
फिर अगले ही पल,
निगांहे इधर उधर दौड़ाता,
फिर भूख से बिलख पड़ता।

तेज घूप चेहरे पर पड़ती
परेशान हो जाता वो,
भूख-प्यास की
तड़प बढ जाती,
अंदर तक उसे सता जाती,
शायद ममता की छांव
से बहुत दूर था वो,
सहसा अंधेरे में एक कदम देख,
चेहरा खिल सा उठा उसका,
आँखों में चमक आ गई,
तभी एक साए ने उसे गोद मे ले
सीने से लगा लिया।

मैंने सोचा शायद वो,
काम मे कहीं अटकी होगी,
पर ये क्या? मंजर बदल गया!
अगले ही कुछ पलों मे,
आँखें पोछती वो वापस जा चुकी थी!

भिखारियों के एक झुंड ने मोहवश,
उस बच्चे को गोद ले लिया,
उत्सुकतावश मैंने
उस बच्चे के बारे में पूछा,
जवाब मिला, "यतीम भाई है अपना"
मैं सन्न सा सोचता रह गया ।