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Saturday 23 December 2023

दरबदर

वही रास्ते, वो ही शहर,
वही दिन, वही रात, वो ही दोपहर,
न है, तो बस वो रहगुजर!

वो शोर, वो कोलाहल,
गुजरते उन कारवों का, हलाहल,
पल, वो सारे चंचल,
चल पड़े किधर!

विदा हो चले वो साए,
वो पल, वो दूर तलक जाती राहें,
वो विपरीत दिशाएं,
हो चले दरबदर!

यूं सूना, अब वो गगन,
ज्यूं, है कहीं काया कहीं धड़कन,
विरह का ये आंगन,
जगाए रात भर!

वही रास्ते, वो ही शहर,
वही दिन, वही रात, वो ही दोपहर,
न है, तो बस वो रहगुजर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Thursday 23 December 2021

आईना

वक्त संग, तुम ढ़ल ही जाओगे,
कब तलक, आईनों में, खुद को छुपाओगे!

वक्त की, खुली सी है ये विसात,
शह दे, या, कभी दे ये मात,
इस वक्त से, यूं न जीत पाओगे,
कभी हारकर भी, ये बाजी, जीत जाओगे!

दिन-ब-दिन, ढ़ल रहा, ये वक्त,
राह भर, ये मांगती है रक्त,
धार, वक्त के, ना मोड़ पाओगे,
रहगुजर, इस वक्त को ही, तुम बनाओगे!

छल जाएगा, कल ये आईना,
बदल जाएगा, ये आईना,
छवि, इक, अलग ही पाओगे,
वक्त की विसात पर, यूं ढ़ल ही जाओगे!

उसी शून्य में, कभी झांकना, 
कल का, वो ही आईना,
वक्त के वो पल, कैद पाओगे,
वो आईना, चाहकर भी न तोड़ पाओगे!

वक्त संग, तुम ढ़ल ही जाओगे,
कब तलक, आईनों में, खुद को छुपाओगे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday 31 July 2021

तिश्नगी-2

ले जाऊँ किधर, उनकी यादों का शहर,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!

भूलती है कहाँ, दो आँखों का वो जहां,
पिघलते धूप सा, हल्का वो धुआँ,
मिले जो रंग वही, कहीं मैं जाऊँ ठहर,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!

ले जाऊँ किधर....

वही तो रंग है, पर, वो फागुन है कहाँ, 
भीगा सा, बादलों का, वो कारवाँ,
बे-वक्त, उमर आया, था एक पतझड़,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!

ले जाऊँ किधर....

सिमटी-सिमटी, गुजर रही, वो चांदनी,
ज्यूँ राग से, मुकर गई हो, रागिनी,
धूँधलाती रही, रात भर, वही रहगुजर,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!

ले जाऊँ किधर, उनकी यादों का शहर,
भटकाए, वही तिश्नगी, दर-बदर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Monday 20 May 2019

तलाश

अपना कोई रहगुजर, तलाशती है हर नजर...

वो रंग है, फिर भी वो कितनी उदास है!
उसे भी, किसी की तलाश है...
दिखना है उसे भी, निखर जाना है उसे भी!
बिखर कर, संग ही किसी के....
जीना है उसे भी!

प्रखर है वो, लेकिन कितनी निराश है!
साथी बिना, रंग भी हताश है...
आँचल ही किसी के, विहँसना है उसे भी!
लिपट कर, अंग ही किसी के.....
मिटना है उसे भी!

खुश्बू है वो, उसे साँसों की तलाश है!
तृप्त है, फिर कैसी ये प्यास है?
मन में किसी के, बस उतरना है उसे भी!
सिमट कर, जेहन में किसी के....
रहना है उसे भी!

वो श्रृंगार है, उसे नजर की तलाश है!
सौम्य है, पर चाहत की आस है...
नजर में किसी के, रह जाना है उसे भी!
निखर कर, बदन पे किसी के...
दिखना है उसे भी!

रिक्तता है, जिन्दा सभी में पिपास है!
बाकि, नदियों में भी प्यास है...
इक समुन्दर से, बस मिलना है उसे भी!
उतर कर, दामन में उसी के....
मिटना है उसे भी!

अपना कोई रहगुजर, तलाशती है हर नजर...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Thursday 15 March 2018

इसी शहर से

ठहरकर इसी शहर से हम गुजर जाते हैं...

ये तमाम रास्ते, कहीं दूर शहर से जाते हैं...
पर मेरे वास्ते, ये बंद नजर आते है!
किसी मोहपाश में हम यहाँ बंधे जाते हैं,
यूं शहर की धूल में बिखर जाते हैं?

हम न शीशा कोई ,जो पल में टूट जाते हैं...
फिसलकर हाथ से जो छूट जाते हैं!
हैं वही सोना, जो तपकर निखर जाते हैं,
जलकर आग में भी सँवर जाते हैं!

शहर की शुष्क आवोहवा बदल जाते है...
यूं खुश्बू की तरह यहाँ बिखर जाते हैं!
गर्मियों में फुहार बनकर बरस जाते है,
हम शहर के रहगुजर बन जाते हैं!

ठहरकर इसी शहर से हम गुजर जाते हैं...
भले ही हमसफर न कोई हम पाते हैं!
यूं बार-बार इस दिल को हम समझाते हैं,
फिर न जाने हम खुद बहक जाते हैं?

ठहरकर इसी शहर से हम गुजर जाते हैं...

Wednesday 17 August 2016

पहर दो पहर

पहर दो पहर,
हँस कर कभी, मुझसे मिल ए मेरे रहगुजर,
आ मिल ले गले, तू रंजो गम भूलकर,
धुंधली सी हैं ये राहें, आए न कुछ भी नजर,
आ अब सुधि मेरी भी ले, इन राहों से भी तू गुजर....

पहर दो पहर,
चुभते हैं शूल से मुझको, ये रास्तों के कंकड़,
तीर विरह के, हँसते हैं मुझकों बींधकर,
ये साँझ के साये, लौट जाते हैं मुझको डसकर,
ऐ मेरे रहगुजर, विरह की इस घड़ी का तू अन्त कर......

पहर दो पहर,
कहती हैं ये हवाएँ, आती हैं जो उनसे मिलकर,
है बेकरार तू कितना, वो तो है तुझसे बेखबर,
आँखों में उनके सपने, तू उन सपनों से आ मिलकर,
ए मेरे रहगुजर, उन सपनों से न कर मुझको बेखबर.....

पहर दो पहर,
लौट जाती हैं उनकी यादें, कई याद उनके देकर,
बंध जाता है फिर ये मन, उन यादों में डूबकर,
रोज मिलता हूँ उनसे, यादों की वादी में आकर,
ऐ मेरे रहगुजर, इन यादों से वापस न जा तू लौटकर....