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Friday 9 July 2021

रुख मोड़ दो

कोई रुख मोड़ दो, इस सफर का,
या छोड़ दो, ये काफिला,
अनमना सा, हो चला, ये सिलसिला!

बेखबर, ये अनमना सा, अन्तहीन सफर,
हर तरफ, बस, एक ही मंज़र,
बेतहाशा भागते सब, पत्थरों के पथ पर,
परवाह, किसकी कौन करे?
पत्थरों से लोग हैं, वो जियें या मरे!
अनभिज्ञ सा, ये काफिला,
अपनी ही, पथ चला!

अनसुना कर चला, ये सफर, ये काफिला!

अनसुने से, धड़कनों के हैं, गीत कितने,
बाट जोहे, हैं बैठे, मीत कितने,
किनारों पर, अनछुए से प्रशीत कितने,
बेसुरे से, हो चले, संगीत सारे,
गूंज कर ये वादियाँ, किनको पुकारे!
संगदिल सा, ये काफिला,
अपनी ही, धुन चला!

कोई रुख मोड़ दो, इस सफर का,
या छोड़ दो, ये काफिला,
अनमना सा हो चला, ये सिलसिला!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday 28 November 2018

अजीब से फासले

बड़े अजीब से, हैं ये फासले....

इन दूरियों के दरमियाँ,
जतन से कहीं, 
न जाने कैसे, मन को कोई बांध ले..

अजीब से हैं ये फासले....

अदृश्य सा डोर कोई,
बंधा सा कहीं, 
उलझाए, ये कस ले गिरह बांध ले...

अजीब से हैं ये फासले....

जब तलक हैं करीबियाँ,
बेपरवाह कहीं,
याद आते हैं वही, जब हों फासले...

अजीब से हैं ये फासले....

सिमट आती है ये दूरियाँ,
पलभर में वहीं,
इन फासलों से जब, कोई नाम ले...

अजीब से हैं ये फासले....

फिर गूंजती है प्रतिध्वनि,
वादियों में कहीं,
दबी जुबाँ भी कोई, गर पुकार ले ....

अजीब से हैं ये फासले....

पैगाम ले आती है हवाएँ,
दिशाओं से कहीं,
इक तरफा स्नेह, फासलों में पले....

अजीब से हैं ये फासले....

इक अधूरा कोई संवाद,
एकांत में कहीं,
खुद ही मन, अपने आप से करे...

अजीब से हैं ये फासले....

Wednesday 18 July 2018

वजह ढूंढ लें

जीने की कुछ तो वजह होगी,
बेवजह ये साँसे न यूं ही चली होंगी,
न सीने में दर्द यूं ही जगा होगा,
ये आँसू न यूं ही आँखों मे भरा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
वजह वही चलो हम ढूंढ लें.....

नैन बेचैन रहते हैं क्यूं रातभर,
दूर अपना कोई उनसे तो रहा होगा,
नीर नैनों से न यूं ही बहे होंगे,
नैनों से उस ने कुछ तो कहा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
चलो वजह वही हम ढूंढ लें.....

न यूं ही सजी होंगी ये वादियां,
ये पर्वत यूं ही एकाकी न हुआ होगा,
बर्फ शीष पर यूं ही न जमे होंगे,
धार बनकर नदी यूं ही न बही होगी,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
वजह वही चलो हम ढूंढ लें.....

विहँसती हैं धूप में क्यूं पत्तियां,
पत्तियों का बदन भी तो जला होगा,
खिलते हैं हँसकर ये फूल क्यूं,
ये कांटा फूलों को भी तो चुभा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
चलो वजह वही हम ढूंढ लें.....

जीने की कुछ तो वजह होगी,
बेवजह न उभर आया होगा रास्ता,
कुछ कदम कोई तो चला होगा,
अकेला सारी उम्र न कोई रहा होगा,
वजह कुछ न कुछ तो रहा होगा,
वजह वही चलो हम ढूंढ लें.....

Friday 3 June 2016

वादियों में कहीं

कहीं दूर तन्हा हसीन वादियों में,
गा रहा है ये दिल अब तन्हाईयों के गीत,
चौंक कर जागता है मन बावरा,
सोचता यहीं कही पे है मेरे मन का मीत।

कहीं दिल की लाल सरिताओ में,
खिल उठ्ठे हैं जैसे असंख्य कमल के फूल,
कह रहा है मुझसे दिल ये बावरा,
धड़केगा एक दिन वो पत्थर भी जरूर।

जैसे फूल खिल उठते हैं पत्थरों पे,
ताप से पिघलतेे है मोम के ये सुलगते दिए,
हो जाएंगे वो भी ईश्क मे बावरा,
मेेरी तन्हा रातों में कभी वो जलाएंगे दिए।

ये वादियाँ हैं इंतजार की फूल के,
झूम उठते हैं जो इन तन्हाईयों के गीत पे,
तन्हा लम्हों में छुपा है वो बावरा,
इन वादियों में कहीं वो इंतजार में प्रीत के।

Thursday 26 May 2016

खुशफहमी

इन वादियों में इस शाम को फिर आज सुरमई कर लूँ.....

गुनगुनाती हुई इन फिजाओं में,
फिर भूला सा कोई गजल मैं भी कह लूँ,
कचनार कहीं फिर घुली हवाओं में,
अपनी गजलों में कुछ ताजगी मैं भर लूँ,
नकाब रुखसार से हटे जब आपकी,
उन लरजते होठों पे शबनमी गीत कोई मैं लिख दूँ।

ये वादियाँ हैं खुशफहमी की,
फिर भरम कोई प्रीत का मन में रख लूँ,
गजलों में ढ़लती उन फिजाँओं संग,
उनकी वजूद का कुछ वहम मैं संग कर लूँ,
वो चंपई रुखसार दिखे जब आपकी,
ढ़लती हुई इस शाम को गीतों से मैं सुरमई कर दूँ।

सज गई हैं अब कतारें फूलों की,
रंग कोई प्यार का फूलों से मैं भी माँग लूँ,
ऐ मन, गीत नया फिर कोई तू सुना,
उन गीतों में साज दिलों के मैं भी छेड़ लूँ,
गिर के पलकें फिर उठे जब आपकी,
फूलों के वो रंग उन पलकों में प्यार से मैं भर दूँ।

ढ़लती हुई इस शाम को फिर आज सुरमई कर लूँ.....

Saturday 9 April 2016

चल संभल ले एे दिल

चल संभल ले एे दिल,यहीं कहीं खो न जाए मन तेरा।

खोया-खोया सा मन, ये किन वादियों में आज,
लग रहा यूँ मिल रहा दिल, आपसे सपनों में आज,
सामने बैठी हो तुम और मैं देखता हुँ चुपचाप।

दूर झिलमिल रौशनी में, बस मुस्कुराते हों आप,
बंद पलकें लिए मैं देखता, हर तरफ बस आप ही आप,
तसब्बुर में खोए हैं आपके, सामने बैठे हों आप।

तिलिस्म है ये कौन सा, गहरा हुआ अब ये राज,
क्या है वो हकीकत? या है वो बस तसब्बुर की बात,
लग रहा खो रहा मन, फिर उन्हीं सपनों में आज।

किन अंधेरों मे भटकता, बावरा ये मन मेरा,
सपनों की उन वादियों में, हर तरफ बस इक अंधेरा,
चल संभल ले एे दिल, कहीं खो न जाए मन तेरा।

Wednesday 9 March 2016

भरम

भरम सा हो रहा है मन को, या ये आहट है उनकी.....?

एक छुअन सी महसूस होती हर पल,
एहसास अंजान खुश्बु की पल पल,
खामोशी फैली दिल के प्रस्तर पर प्रतिपल,
फिजाओं में पल पल कैसी है हलचल.......!

भरम सा हो रहा है मन को, या ये आहट है उनकी.....?

अदृश्य अस्तित्व क्यों हर पल उसकी,
ध्वनि है यह किस मूक आकृति की,
गुंजित हो रही वादियाँ ध्वनि से किसकी,
आह सी मन से निकल रही आज किसकी....!

भरम सा हो रहा है मन को, या ये आहट है उनकी.....?

पत्तियों में पल पल ये सरसराहट कैसी,
सिहरन सी बदन में छुअन की कैसी,
जेहन में हर पल गूंजती ये आवाज कैसी,
एहसास नई जगी दिल मे आज कैसी.......!

भरम सा हो रहा है मन को, या ये आहट है उनकी.....?

Tuesday 26 January 2016

धड़कनों की सदाएँ

किसकी सदाएँ गूँजती वादियों के दरमियाँ फिर,
धड़कने किसी की सुनाई दे रही मुझको यहाँ फिर,
क्या हृदय किसी विरहन का व्यथित हो गया है फिर?
या याद में किसी के कोई रो रहा है फिर?

ठहरो जरा संगीत धड़कनों की सुन लूँ मैं भी
अपने सुरमंदिर की तानपूरा का तार बुन लूँ मैं भी,
सुर चुरा लू दर्द का आज व्यथित हो रहा मैं भी,
या याद मे किसी की आज रो रहा हूँ मैं भी?

व्यथित हृदय की धड़कनें बेसुरी सी आज क्युँ,
भूल गए हैं लय सारे इस वीणा के तार क्युँ,
विरहन की संगीत को आज मिलते नही हैं साज क्युँ,
या याद मे विरहन की मैं बिसर गया संगीत ज्युँ?

Tuesday 12 January 2016

दिल ढूंढता वो अफसाना

वो इक अफसाना,
सदियों से हृदय मे अंकित,
दिल की वादियों मे फूलों सा लहराता,
तेरी स्पर्श का मीठा अहसास देता,
सुकून मिल जाता।

लगता है जैसे,
कल की ही बात है अभी,
यादों की दृष्टिपटल पर उभर आता,
पलकें मूँद फिर मन को सहलाता,
सुकून मिल जाता।

दिल फिर ढूंढता,
वही हसरतों के खूबसूरत पल,
बेपरवाह हँसी, मधुमय बातों के सिलसिले,
मन की गुफाओं मे कैद वो अफसाना,
दिल को बेचैन कर जाता।

वो इक खूबसूरत अफसाना,
सदियों से दिल की वादियों मे लहराता।