Showing posts with label विरान. Show all posts
Showing posts with label विरान. Show all posts

Wednesday 25 July 2018

वीरान बस्तियां

आशियाँ उजड़े, वीरान हुई ये बस्तियां,
है बस अनुत्तरित से कुछ अनसुलझे सवाल!

एक एक कर बुझते गए दीये सारे,
धूप, अंधेरों में हौले-हौले से घुलते गए,
किरणों में सिलते गए सैकड़ों मलाल,
आसमां पर आ बिखरे रंग गुलाल!

बस्तियों से दूर हो चले ये उजाले,
सांझ हुई या हैं ये गर्त अंधेरों के प्याले,
स्तब्ध खमोश हो चले सब सहचर,
सन्नाटों में चीख रहे ये निशाचर!

छल-छल करती पसरती ये रात,
पल-पल बोझिल होता ये सूना मंजर,
हर क्षण फैला है मरघट सा आलम,
बस्तियों में व्याप चुके हैं मातम!

अब शेष रह गए हैं कुछ सवाल,
और शेष बची हैं कुछ टूटी सी तस्वीरें,
उस रौशनी का है  बस  ख्याल भर,
शायद, वापस आएं वो मुड़कर!

आशियाँ उजड़े, वीरान हुई ये बस्तियां,
है बस अनुत्तरित से कुछ अनसुलझे सवाल!