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Friday 31 July 2020

उम्मीदों के तारे

चलो के, चलने लगे हैं ये नजारे!
रोके, रुक न पाएंगे,
वो बिन तुम्हारे!

एक तुम हो के, ठहर से जाते हो,
हर बात पर,
यूँ, मुकर भी जाते हो,
ठहरेंगे, ना वो पल, बिन तुम्हारे!
रोके, रुक न पाएंगे,
सारे बे-सहारे!

यूँ तो ना बैठो, मुँह उधर फेरकर,
मन तोड़ कर,
यूँ, रंगों को छोड़ कर,
टूटे पलों से, खुद को जोड़ कर,
मर भी न पाएंगे ये,
नजर के मारे!

क्यूँ हो मलाल, बिखरे हैं गुलाल,
उस गगन पर,
क्षितिज के, कोर पर,
लम्हे हजार, खड़े उस मोड़ पर,
यूँ ही, गुजर न जाएँ,
लम्हे ये सारे!

पल-पल, संकुचित होंगे ये क्षण,
हर शाख पर,
छोड़ जाएंगे, ये निशां,
रूठो न यूँ, पलों को छोड़ कर,
यूँ ही, ढ़ल न जाए,
पलों के इशारे!

उभरेंगे, समय के, नव-संस्करण,
उस काल पर,
शायद, हम-तुम न हों!
वक्त के भाल पर, ये रंग न हो!
या, फिर हम न हों,
हमदम तुम्हारे!

चल चलें, उन्हीं पगडंडियों पर,
उसी राह पर,
बुन लें, अधूरे ये सपन,
चुन लें, वक्त के सारे संकुचन!
भर लें, फिर नयन में, 
उम्मीदों के तारे!

चलो के, चलने लगे हैं ये नजारे!
रोके, रुक न पाएंगे,
वो बिन तुम्हारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday 27 March 2020

मेरे नज्म

न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!
ये बातें हैं, मन की, उलझ जाइएगा!

हो कैद, पल में, 
कभी, पल को लिखे!
यूँ, अचानक!
कभी, कुछ लिखे, कभी, कुछ भी लिखे!
विचरता, है स्वच्छंद,
अन्तर्द्वन्द, ना समझ पाइएगा!

न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!

पलों के, संकुचन,
यूँ ही, गुजरते हुए क्षण!
रोके, ये मन,
थाम ले ये बाहें, कहे, चल कहीं बैठ संग!
गतिशील, हर क्षण,
इन्हीं द्वन्दों में, घिर जाइएगा!

न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!

बहती सी, ये धारा,
न पतवार, है ना किनारा!
रोके, ना रुके,
उफनते ये लहर, जलजलों सा है नजारा!
तैरते, ये सिलसिले,
कहीं खुद को, डुबो जाइएगा!

न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!

ये सुनता ही नहीं,
है मेरे, दिल की कभी!
ये, जिद्दी बड़ा, 
करता है बक-बक, जी में आए कुछ भी!
पागल सा ये मन,
ये बातें, ना समझ पाइएगा!

न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!
ये बातें हैं, मन की, उलझ जाइएगा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
 (सर्वाधिकार सुरक्षित)