जीवन के अनुभवों पर, मेरे मन के उद्घोषित शब्दों की अभिव्यक्ति है - कविता "जीवन कलश"। यूं, जीवन की राहों में, हर पल छूटता जाता है, इक-इक लम्हा। वो फिर न मिलते हैं, कहीं दोबारा ! कभी वो ही, अपना बनाकर, विस्मित कर जाते हैं! चुनता रहता हूँ मैं, उन लम्हों को और संजो रखता हूँ यहाँ! वही लम्हा, फिर कभी सुकून संग जीने को मन करता है, तो ये, अलग ही रंग भर देती हैं, जीवन में। "वैसे, हाथों से बिखरे पल, वापस कब आते हैं! " आइए, महसूस कीजिए, आपकी ही जीवन से जुड़े, कुछ गुजरे हुए पहलुओं को। (सर्वाधिकार सुरक्षित)
Wednesday 7 December 2022
पीपल सा पल
Friday 9 July 2021
रुख मोड़ दो
Sunday 28 February 2021
कल से यहाँ
Friday 11 December 2020
और कितना
Monday 31 August 2020
रुक जरा
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!
चुप-चुप, ये गुनगुनाता है कौन?
हलकी सी इक सदा, दिए जाता है कौन?
बिखरा सा, ये गीत है!
कोई अनसुना सा, ये संगीत है!
है किसकी ये अठखेलियाँ,
कौन, न जाने यहाँ!
पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!
उनींदी सी हैं, किसकी पलक?
मूक पर्वत, यूँ निहारती है क्यूँ निष्पलक?
विहँस रहा, क्यूँ फलक?
छुपाए कोई, इक गहरा सा राज है!
कौन सी, वो गूढ़ बात है?
जान लूँ, मैं जरा!
पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!
कोई लिख रहा, गीत प्यार के!
यूँ हवा ना झूमती, प्रणय संग मल्हार के?
सिहरते, न यूँ तनबदन!
लरजते न यूँ, भीगी पत्तियों के बदन!
यूँ ना डोलती, ये डालियाँ!
कैसी ये खामोशियाँ!
पल भर को, रुक जरा, ऐ मेरे मन यहाँ,
चुन लूँ, जरा ये खामोशियाँ!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Friday 19 June 2020
मन हो चला पराया
वो कौन आया?
मन हो चला पराया!
लचकती डाल पर,
जैसे, छुप कर, कूकती हो कोयल,
कदम की ताल पर,
दिशाओं में, गूंजती हो पायल,
है वो रागिनी या है वो सुरीली वादिनी!
वो कौन है?
जो लिए, संगीत आया!
जग उठी, सोई सी संवेदनाएँ,
मन हो चला पराया!
आँखें मूंद कोई,
कुछ कह गया हो, प्यार बनकर,
गिरी हो बूँद कोई,
घटा से, पहली फुहार बनकर,
है वो पवन, या वो है नशीला सावन!
वो कौन है?
जो लिए, झंकार आया!
जग उठी, सोई सी संवेदनाएँ,
मन हो चला पराया!
चहकती सी सुबह,
जैसे, जगाती है झक-झोरकर,
खोल मन की गिरह,
कई बातें सुनाती है तोलकर,
है वो रौशनी या वो है कोई चाँदनी!
वो कौन है?
जो लिए, पुकार आया!
मेरी सुसुप्त संवेेेेदनाओं को फिर पिरोने,
वो कौन आया?
मन हो चला पराया!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
Saturday 28 December 2019
मींड़
दूर, कहाँ जाओगे!
बहा ले आएगी, ये मंद समीर,
मुझको है मालूम, खामोश गजल हो तुम,
भूल चुके, बस हीड़ मेरे,
इक ठहरी सी, चंचल आरोह हो तुम,
अवरोह तलक, लौट आओगे,
झंकार वही, दोहराओगे,
दूर, कहाँ जाओगे!
बलखाती मूर्च्छनाओं से पीड़,
महसूस मुझे है, गुमसुम सा रहते हो तुम,
हो आहों में, हीड़ भरे,
खामोश लहर, सुरीली स्वर हो तुम,
दर्द भरे, मींड़ मेरे दोहराओगे,
विचलन, सह न पाओगे,
दूर, कहाँ जाओगे!
सुन कर, रुक जाते हैं समीर,
लगता है जैसे, ऐसे ही ठहर चुके हो तुम,
मुर्छनाओं में, हो घिरे,
गँवाए सुध-बुध, यूँ सुन रहे हो तुम,
बंध कर, फिर लौट आओगे,
यूूँ ही, तुम रुक जाओगे,
दूर, कहाँ जाओगे!
दूर, कहाँ जाओगे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
मींड़: (स्त्रीलिंग) का अर्थ:
१. मींड़ने की अवस्था, क्रिया या भाव
२. संगीत में एक स्वर से दूसरे स्वर पर जाते समय मध्य का अंश ऐसी सुन्दरता से कहना कि दोनों स्वरों के बीच का सम्बन्ध स्पष्ट हो जाय
यह एक प्रकार का प्रबन्ध काव्य है, जो बुन्देल-खंड, मालवे, राजस्थान आदि में गूजर लोग दिवाली के समय गाते हैं
संगीत के स्वरों का आरोह-अवरोह
Thursday 29 August 2019
धुंधली शाम
हो सिमटी हुए, दामन में घड़ियाँ,
हों बहके हुुुए, सारे लम्हे यहाँ,
चलते रहे, हाथों को थाम!
सुरमई गीत, गा रही हो चाँदनी,
हल्की सी हो, फ़िजा जामुनी,
छलके हों, हल्के से जाम!
हो बस वही, सितारों सी आँखें,
मंंद ना हो, ये रौशन सौगातें,
खोए रहे, उम्र ये तमाम!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
Friday 11 May 2018
भोर की पहली किरण
सिमट रही है चटक रंग किसी के आँचलों में,
विहँसती खिल रही ये सारी कलियाँ,
डाल पर डोलती हैं मगन ये तितलियाँ,
प्रखर शतदल हुए हैं अब मुखर,
झूमते ये पात-पात खोए हुए हैं परस्पर,
फिजाओं में ताजगी भर रही है पवन!
मन को लग गए हैं पंख यूं ही आवारगी में,
चहकने लगी है जागकर ये पंछियाँ,
हवाओं में उड़ चली है न जाने ये कहाँ,
गुलजार होने लगी ये विरान राहें,
बेजार सा मन, अब भरने लगा है आहें,
फिर से चंचल होने लगा है ये पवन!
गीत कोई गाने लगा है कहीं रानाईयों में,
संगीत लेकर आई ये राग बसंत,
इस विहाग का न आदि है न कोई अंत,
खुद ही बजने लगे हैं ढोल तासे,
मन मयूरा न जाने किस धुन पे नाचे,
रागमय हुआ है फिर से ये भवन!
Tuesday 21 November 2017
वही धुन
वो पहला कदम, वो छम छम छम,
इस दहलीज पर, रखे थे जब तूने कदम,
इक संगीत थी गूंजी, गूंजा था आंगन,
छम छम नृत्य कर उठा था ये मृत सा मन,
वही प्रीत, वही स्पंदन, दे देना मुझको सारा...
धुन सरगम की वही, चुन लाना फिर से तू यारा......
वो चौखट मेरी, जो थी अधूरी सूनी,
अब गाते है ये गीत, करते है मेरी अनसुनी,
घर के कण-कण, बजते हैं छम छम,
फिर कोई गीत नई, सुना दे ऐ मेरे हमदम,
गीतों का ये शहर, मुझको प्राणों से है प्यारा...
धुन सरगम की वही, चुन लाना फिर से तू यारा......
वो स्नेहिल स्पर्श, वो छुअन के संगीत,
वो नैनों की भाषा में गूंजते अबोले से गीत,
धड़कन के धक-धक की वो थपकी,
साँसों के उच्छवास संग सुर का बदलाव,
वही प्रारब्ध, वही ठहराव, वही अंत है सारा...
धुन सरगम की वही, चुन लाना फिर से तू यारा......
स्तब्ध हूँ, उस धुन से आलिंगनबद्ध हूँ,
नि:शब्द हूँ, अबोले उन गीतों से आबद्ध हूँ,
स्निग्ध हूँ, उन सप्तसुरों में ही मुग्ध हूँ,
विमुक्त हूँ, निर्जन मन के सूनेपन से मुक्त हूँ,
कटिबद्ध हूँ, उस धुन पर मैने ये जीवन है वारा.....
धुन सरगम की वही, चुन लाना फिर से तू यारा......
Thursday 25 February 2016
गीत वही तुम दोहराओ ना!
मन मेरा आज विकल गीत कोई तुम गाती,
गीत वही मैं सुन लेता जो तुम मन से गाती,
राग मुखर मैं भी करता जो तुम संग दुहराती,
गीत मधुर मैं गा पाता जो तुम संग संग गाती।
मन मेरा पुलकित हो जाता, आज संगीत कोई तुम गाती।
मेरे जीवन की वीणा है अब हाथों मे तेरे,
कितने ही मधु संगीत संग संग हमने हैं छेड़े,
तुम गाती जो संगीत मन खिल उठते मेरे,
आज कोई गीत नई, संग दोहराओ तुम मेरे।
मन मेरा पुलकित कर जाओ, गीत कोई तुम छेड़ो ना।
जीवन, मरण, कुछ दोनों के ही हैं हम साथी,
इस वीणा की संगीत अधूरी गीत कोई तुम गाती,
आरम्भ तुम्ही से जीवन का अंत तुम्ही कर जाती,
उदास पलों मे जीवन के गीत वही तुम दोहराती।
जीवन को तुम मुखरित कर दो, संगीत मेरे संग छेड़ो ना।
Monday 28 December 2015
साथ मेरे तुम क्यूँ नही आए
कोलाहल मची है मन के अन्दर,
प्राणों के आवर्त मे भी लघु कंपन,
अपनी वाणी की कोमलता से,
कोलाहल क्युँ ना तुम हर जाते,
बोलो ! साथ मेरे तूम क्यूँ नही आए।
इक क्षण को तब मिटी थी पीड़ा,
साथ तुम्हारा मिला था क्षण भर,
कोलाहल तब मिटा था मन का,
तुमसंग जीवन जी गया मैं पल भर,
बोलो ! साथ मेरे तुम क्युँ नही आए।
अवसाद मिटाने तुम आ जाते,
जीवन संगीत सुनाने तुम आ जाते,
वीणा तार छेड़ने तुम आ जाते,
जीवन क्लेश मिटानें तुम आ जाते,
बोलो ! साथ मेरे तूम क्युँ नही आए।