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Friday 15 January 2016

हिरण सा मन

हिरन सा चंचल मन कैद में विवश,
कुटिल शिकारी के जाल फसा मोहवश,
कुलाँचे भर लेने को उत्तेजित टांगें,
चाहे तोड़ देना मोहबंधन के जाल बस।

फेके आखेटक ने मोह के कई वाण,
चंचल मन भूल वश ले फसता जान,
मन में उठती पीड़ा पश्चाताप के तब,
जाल मोहमाया का क्युँ आया न समझ।

छटपटाते प्राण उसके हो आकुल,
मोहपाश क्युँ बंधा सोचे हो व्याकुल,
स्वतंत्र विचरण को आत्मा पुकारती,
धिक्कारती खुद को हिरण ग्लानि वश।

Sunday 3 January 2016

मन का हिरण

हिरण सदृश चंचल मन,
दौड़े चहुँ ओर वन उपवन,
संग लिए चपल चितवन।

गति मन की अति अद्भुत्,
इत देखे ना कभी उत्,
समझ हृदय तू बन प्रबुद्ध।

मन पर तू रख नियंत्रण,
वश कर इंन्द्रियों को क्षण-क्षण,
ढ़क ले प्राणों का आवरण।