Friday 28 October 2016

काश

काश! यादों के उस तट से गुजरे न होते हम....

रंग घोलती उन फिजाओं में,
शिकवे हजार लिए अपनी अदाओं में,
हाँ, पहली बार यूँ मिले थे तुम.....

कशिश बला की उन बातों में,
भरी थी शरारत उन शरमाई सी आँखों में,
हाँ, वादे हजार कर गए थे तुम.....

नदी का वो सूना सा किनारा,
वो राह जिनपर हम संग फिरे थे आवारा,
हाँ, उन्हें तन्हा यूँ कर गए थे तुम.....

ढली सुरमई सांझ कभी रंगों में,
कभी रातें शबनमीं तुझको पुकारती रहीं,
हाँ, मुद्दतों अनसुनी कर गए थे तुम....

बातें वो अब बन चुकी हैं यादें,
रह रह पुकारती है मुझको, तेरी वो बातें,
हाँ, लहरों सी यादें देकर गए थे तुम......

काश! यादों के उस तट से गुजरे न होते हम....

Thursday 27 October 2016

संग बैठ मेरे

संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!
आ इस क्षण मैं, तुझको अपनी इन बाहों का पाश दूँ.....

क्षण तेरा तुझसे है नाराज क्यूँ?
मन हो रहा यूँ निराश क्यूँ?
सब कुछ तो है रखा है इस क्षण में,
आ अपने सपनों में झांक तू,
संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!

सुंदर ये क्षण है, इस क्षण ही जीवन है,
कल-कल बहता ये क्षण है,
तेरी दामन में चुपके रहता ये क्षण है,
आ इस क्षण अपनों के पास तू,
संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!

फिर क्यूँ इस क्षण है उदास तू?
सांसें कुछ अटकी तेरी प्राणों में है,
कुछ बिंब अधूरी सी तेरी आँखों में है,
आ हाथों से प्रतिबिम्ब निखार तू,
संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!

स्वर आशा के इस क्षण हैं,
तेरी सांसों में भी सुर के कंपन हैं,
मन वीणा है मन सितार है,
आ आशाओं  के भर आलाप तू,
संग बैठ मेरे, आ पल दो पल को पास तू!

आ इस क्षण मैं, तुझको अपनी इन बाहों का पाश दूँ.....

Tuesday 25 October 2016

संवेदनाएँ

पल-पल प्रबल आघात करती ये निरीह संवेदनाएँ ...

करवट ली है संवेदनाओं ने आज फिर से,
झकझोर दिया हो दरिया को मछवारे ने जैसे,
आँधियों में झूलती हों पत्तियाँ डाल पर जैसे,
मन की शांत झील, झंकृत है लहराकर ऐसे.....

संवेदनाएँ! निरीह, लाचार खुद अन्दर से,
पतली सी काँच कहीं चकनाचूर रखी हों जैसे,
कनारों के धार नासूर सी डस रही हों जैसे,
अंतःकरण हृदय के, लहुलुहान कर गई ये ऐसे....

वश में कहाँ, किसी मानव की ये संवेदनाएँ,
बाँध तोड़ कर बह जाती हो, धार नदी की जैसे,
मगरूर शिलाएँ प्लावित होती हैं इनमें जैसे,
विवश कर गई ये, अंतःमानस के कण-कण ऐसे...

सुख में कभी सम्मोहित करती संवेदनाएँ,
छलक पड़ती हैं फिर आँखों में बूंद-बूंद बनके,
छिरकते हैं मनोभाव कभी तेज कदमों से,
क्या रह पाऊँगा पृथक? मैं इन संवेदनाओं से....?

Thursday 20 October 2016

दीपावली / दिवाली

इक दीप मन में जले, तम की भयावह रात ढ़ले...

है दुष्कर सी ढ़लती ये शाम,
अंधेरों की ओर डग ये पल-पल भरे,
है अंधेरी स्याह सी ये रात,
तिल-तिल सा ये जीवन जिसमें गले,
चाहूँ मैं वो दीपावली, जो ऊजाले जीवन में भरे....

है बुझ रही वो नन्ही सी दीप,
जूझकर तम से प्रकाश जिसने दिए,
है वो ईक आस का प्रतीक,
कुछ बूँद अपनी स्नेह के उसमें भरे,
मना लूँ मैं वो दीपावली, दीप आस का जलता रहे....

है संशय के विकट बादल घिरे,
अज्ञानता की घनघोर सी चादर लिए,
ताले विवेक पर हैं यहाँ जड़े,
प्रकाश ज्ञान का मन में अब कौन भरे?
मनाऊँ अब वो दीपावली, वैर, द्वेश, अज्ञान जले....

इक दीप मन में जले, तम की भयावह रात ढ़ले...

Wednesday 19 October 2016

करवा चौथ - प्रीत

On Karwa Chouth....few lines

प्रीत हो तो कैसी?

किरकिरी सी काजल लगे,
        नैनों  में सुरमा  सहा ना जाए,
जिन नैनों में  श्याम बसे,
       वहाँ  फिर  दूजा कौन समाए...

प्रीत न कीजिये पंछी जैसी,
       जल सूखे पनघट से उड़ जाए,
प्रीत तो कीजै मछली जैसी,
       जल सूखे तलछट में मर जाए...

पतंगे सी भली प्रीत की रीत,
              नित दिए संग जल जाए,
प्रीत क्या जाने वो छिपकली,
              बुझे दीप कहीं छुप जाए...

राधा के ज्युँ जब  प्रीत  निभै,
             मथुरा राधा मय हुई जाए,
जब प्रीत श्याम संग मीरा करै,
             सुर प्रेम ग्रंथ की रच जाए....

करवा चौथ की ढेर सारी शुभकामनाएँ.....

नन्ही बूँद

मचलती सी इक नन्ही बूँद ही तो थे तुम....
निकल पड़ी थी आसमान से जो इक सीप की तलाश में,
न भय ऊँचाई में गिरकर बिखरने का मन में,
न खौफ तपती सी जमीं पर छन से जलने का तुम्हे।

मचलती सी इक नन्ही बूँद ही तो थे तुम....
ये तुझको भी थी खबर, कई बूँद झुलसी है इस आग में,
दूर आसमाँ से हुए थे तुम, अंजाने तलाश में,
खोया हैं वजूद अपना, कितने ही बूंदों ने इस राह में।

मचलती सी इक नन्ही बूँद ही तो थे तुम....
था उधर चाहतों का इक नया संसार, तेरे इंतजार में,
वो पत्तियाँ भी बाग की, सूखी पड़ी थी राह में,
आकर भिगोते तुम ये दामन, सूखी थी जो तेरी चाह में।

मचलती सी इक नन्ही बूँद ही तो थे तुम....
है कायम तेरा वजूद, उस बूँद की तरह मेरे दिल में,
बन गई मोती जो इक दिन, जा गिरी जो सीप में,
अब छलकते हैं जो बन के आँसू, डबडबाकर नैन में। 

Tuesday 18 October 2016

मानसरोवर

तुम देखो ना, खिल आए हैं कमल असंख्य,
तैरते है हर पल ये मेरी हृदय के मानसरोवर में,
कुछ दिखती हैं ये तेरी यादों की परछाई सी,
लगती है कुछ तेरी बातों की अमराई सी,
कुछ बीते लम्हों की नटखट तरुणाई सी,
तुम झांको ना, मेरी हृदय के मानसरोवर में....

तुम देखो ना, प्यारे कितने हैं ये कमल असंख्य,
श्रृंगार विविध रूप के तेरे, उभर आए हैं इनमें,
कुछ मुस्कान लिए तेरे चेहरे के आभा सी,
स्वागत करती ये खुली खुली तेरी आँखों सी,
उभर आई है लालिमा इनमें तेरे होठों की,
तुम उतरो ना, मेरी हृदय के मानसरोवर में....

तुम देखो ना, कोमल कैसे हैं ये कमल असंख्य
करुणा का अगाध सागर जैसे आ सिमटा है इनमें,
कुछ शान्त, स्निग्ध भाव लिए तेरे मुखरे सी,
नर्म स्पर्श करती ये पंखुड़ियाँ तेरे हाथों सी,
लावण्य भर लाई जैसे ये ममतामयी तेरे सूरत की,
तुम आकर देखो ना, मेरी हृदय के मानसरोवर में....

खिल आए हैं कमल असंख्य तेरी ही परछाई के.....