Tuesday 29 November 2016

मेरी स्मृतियाँ

अविस्मरणीय सी कुछ स्मृतियाँ......
या शीतल सुखदायी, या हों अति-दुखदायी,
अविस्मृत,अक्षुण्ण अनंत काल तक रवाँ,
बिसारे बिसरती है ये कहाँ?

अंश कुछ स्मृतियों के रहते हैं बाकि......
या मीठी हो ये स्मृतियाँ, या हों ये खट्टी!
स्मृति कुछ ऐसी ही हूँ मैं भी,
है बहुत मुश्किल भुला देना, यूँ ही मुझको भी!

माना, पत्थर सी शक्ल है हृदय की तेरी,
पर कहीं शेष रह न गई हों यादें मेरी?
टटोल लेना अपनी हृदय को तुम.....
निशान मेरी स्मृति के तुम पाओगे वहाँ भी!

आड़ी-टेढ़ी लकीरों सी पत्तों पर अंकित,
ये पल पल सूख सूख गहराएँगी होकर अमिट,
मानस पटल जब कुरेदोगे तुम ....
उभर आएँगी दबी सी मासूम स्मृतियाँ मेरी!

अक्षुण्ण हूँ हर पल तेरे मन में मैं,
अभिन्न तुझसे हूँ, तेरी यादों की तरंग में हूँ मैं,
साँस -साँस जीता हूँ मैं तुझमें....
झुठला ना पाओगे, स्मृति बिसार न पाओगे मेरी!

Friday 25 November 2016

वृत्तान्त

अटूट लड़ी हो इस जीवन वृत्तान्त की तुम,
अर्धांग सर्वदा ही जन्म-जन्मातर रही हो तुम,
न होते कंपन इस हृदय के गलियारों में,
उभर कर न आती तस्वीर कोई इन आखों में,
न लिख पाता वृत्तान्त मैं जीवन की राहों के,
मेरे पिछले जीवन की ही कोई अटूट कड़ी हो तुम....

लिख जाता हूँ मैं कितने ही पन्ने तेरी लय पर,
अनलिखे कितने ही कोरे पन्ने, फिर होते हैं मुखर,
विह्वल हो उठते हैं शब्दों के भाव इन पन्नों पर,
शक्ल फिर तेरी ही उभर आती है लहराकर,
अर्धांग मेरी, तुम सिमट जाती हो वृत्तान्त बनकर,
मेरे अगले जन्म की कड़ी, कोई लिख जाती हो तुम...

सीधा सा मेरा वृत्तान्त, बस तुम से तुम तक,
इस जन्म पुकार लेता हूँ बस तुम्हे मैं अन्नु कहकर,
गीतों की गूँजन में मेरे, बजते हैं तेरे ही स्वर,
तैरती आँखों में तेरी, जब निखर उठती है तस्वीर मेरी,
प्रेरित होता हूँ मैं वृत्तान्त नई लिख जाने को तब,
जन्म-जन्मांतर की कोई लड़ी सी बन जाती हो तुम...

तिथि: 24/11/2016...
(हमारे शादी की 23वीं सालगिरह पर अर्धांग को सप्रेम)

Saturday 19 November 2016

हुई है शाम

हुई है शाम, प्रिये अब तुम गुनगुनाओ........!

लबों से बुदबुदाओ, तराने प्रणय के गाओ,
संध्या किरण की लहर पर, तुम झिलमिलाओ,
फिर न आएगी लौटकर, ये शाम सुरमई,
तुम बिन ये गा न पाएगी, प्रणय के गीत कोई,
गीत फिर से प्रणय के, तुम वही दोहराओ,

हुई है शाम, प्रिये अब तुम गुनगुनाओ........!

ऐ मन के मीत मेरे, तुम पंछियों सी चहचहाओ,
सिमटती कली सी, तुम लजाती दुल्हन बन आओ,
फिर लौट कर न आएगी, ये शाम चम्पई,
तुम बिन कट न पाएगी, ये रुत, ये प्रहर, ये घड़ी,
तराने मिलन के लिखकर, तुम राग में सुनाओ,

हुई है शाम, प्रिये अब तुम गुनगुनाओ........!

चाँद तारों से मिलने, तुम भी फलक पे आओ,
रूठो ना मुझसे यूँ तुम, दिल की पनाहों में आओ,
झूमकर फिर ना चलेगी, लौटी जो पुरवाई,
तुम बिन न खिल सकेगा, फलक पे चाँद कोई,
प्रणय के तार छेड़कर, अनुराग फिर जगाओ,

हुई है शाम, प्रिये अब तुम गुनगुनाओ........!

Thursday 17 November 2016

तराना प्रणय का

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....

गाएँ कैसे इसे हम, अब तुम ही हमें ये बताना,
ढ़ल रही है शाम, तुम सुरमई इसे बनाना,
अभी सहने दो मुझको, असह्य पीड़ा प्रणय का,
निकलेगी आह जब, इसे धुन अपनी बनाना।

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....

अभी गाऊँ भी कैसै, मैं ये तराना प्रणय का,
आह मेरी अब तक, सुरीली हुई है कहाँ,
बढ़ने दो वेदना जरा, फूटेगा ये तब बन के तराना,
तार टूटेंगे मन के, बज उठेगा तराना प्रणय का।

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....

कभी फूटे थे मन में, वो तराने प्रणय के,
लिखी है जो दिल पे, आकर रुकी थी ये लबों पे,
एहसास थी वो इक शबनमी, पिघलती हुई सी,
कह भी पाऊँ न मैं, दिल की सब बातें किसी से।

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....

छेड़ना ना तुम कभी, फिर वो तराना प्रणय का,
अभी मैं लिख रहा हूँ, इक फसाना हृदय का,
फफक रहा है हृदय अभी, कह न पाएगा आपबीती,
नगमों में ये ढ़लेंगे जब, सुनने को तुम भी आना।

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....

Monday 14 November 2016

चुपचाप

हाँ, बस चुपचाप ....

चुपचाप ....जब आँखों की भाषा में कोई,
गिरह मन की खोलता है चुपचाप,

चुपचाप .... जब साँसों की लय पर कोई,
हृदय की धड़कन गिनता है चुपचाप,

चुपचाप ....जब कदमों की आहट पर कोई,
बेताबी दिल की सुन लेता है चुपचाप,

चुपचाप ....अंतःस्थ प्यार का बादल यूँ ही,
क्षितिज से उमड़ पड़ता है चुपचाप,

चुपचाप ....जब दिल की आँखों से यूँ ही,
कुछ शर्माकर वो देखते है चुपचाप,

चुपचाप .... ये मेरा छोटा सा घर  यूँ ही,
संसार मेरा बन जाता है चुपचाप।

हाँ, बस चुपचाप ....

आ पास मेरे

आ पास मेरे ...पल दो पल, आ पास मेरे।

फिरा लूँ ऊँगली,
तेरे गुलाबी आँखों पर,
लाल लाल उन होठों पर,
लहराते इन गेसुओं पर,
चुरा लूँ झील से तेरे,
नैनों का काजल,
आ पास मेरे ...पल दो पल, आ पास मेरे।

गुलाब के फूलों सा,
महका तेरा बदन,
झूम उठी प्रकृति सुन,
छम-छम की सरगम,
बजा लूँ होकर विह्वल
रूनझुन तेरी पायल,
आ पास मेरे ...पल दो पल, आ पास मेरे।

सूरज संग किरण,
बादल संग बिजली,
हम जी रहे जैसे,
फूलों संग तितली,
तस्वीर तेरी आँखों में,
रहती हर पल,
आ पास मेरे ...पल दो पल, आ पास मेरे।

कुछ तो कहो

कुछ तो कहो मेरे अर्धांग.....

सिले से लब, भीगे से दो नैन,
चुप न रहो कहो मेरे अर्धांग,
लब हिलने दो कह दो वृतान्त,
कुछ बोलो........

सिंदूर का भरम, बिंदी में हम,
देह पत्र तुम, मैं हूँ कलम,
गम न सहो ऐ मेरे मृगान्त,
कुछ पिघलो.......

भौंहें तनी सी , नयन के तेवर,
कमर प्रत्यंचा सी, अनोखे जेवर,
मुझसे कहो कुछ मेरे सर्वांग,
कुछ दो लो........

कुछ तो कहो मेरे अर्धांग.....