न जाने क्यूँ, इक मुझे ही टोक कर,
शायद, तन्हा सफर में देख कर!
थाम कर मेरी बाहें, पूछती है मुझसे ही राहें....
तुम तो हो, बस इक मुसाफिर,
तुम भी, गुजर ही जाओगे,
मैं हूँ इक राह बस, फिर लौट कर न आओगे!
गुजरे कई, गुजरी न ये तन्हाई,
सह गई, विरह और जुदाई,
वर्षों मैं तन्हा रही, क्षणभर न ऐसे रह पाओगे!
इक आग में, मैं सदियों जली,
बिना अनुराग, वर्षों पली,
राहगीर हो तुम, छाँव राहतों के न दे पाओगे!
मिले कई, अपना सा न मिला,
मन में रहा, बस ये गिला,
अपने तो हो तुम भी, अपनापन न दे पाओगे!
अनगिनत रास्ते, हैं तेरे वास्ते,
एक तुझसे, मेरा वास्ता,
हर शै छोड़ गई तन्हा, तुम भी छोड़ जाओगे!
मन पर अंकित हैं, ये रेखाएँ,
जख्म किसे दिखलाएँ,
रेखाएँ के इक मकरजाल, तुम भी दे जाओगे!
न जाने क्यूँ, इक मुझे ही टोक कर,
शायद, तन्हा सफर में देख कर!
थाम कर मेरी बाहें, पूछती है मुझसे ही राहें....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
शायद, तन्हा सफर में देख कर!
थाम कर मेरी बाहें, पूछती है मुझसे ही राहें....
तुम तो हो, बस इक मुसाफिर,
तुम भी, गुजर ही जाओगे,
मैं हूँ इक राह बस, फिर लौट कर न आओगे!
गुजरे कई, गुजरी न ये तन्हाई,
सह गई, विरह और जुदाई,
वर्षों मैं तन्हा रही, क्षणभर न ऐसे रह पाओगे!
इक आग में, मैं सदियों जली,
बिना अनुराग, वर्षों पली,
राहगीर हो तुम, छाँव राहतों के न दे पाओगे!
मिले कई, अपना सा न मिला,
मन में रहा, बस ये गिला,
अपने तो हो तुम भी, अपनापन न दे पाओगे!
अनगिनत रास्ते, हैं तेरे वास्ते,
एक तुझसे, मेरा वास्ता,
हर शै छोड़ गई तन्हा, तुम भी छोड़ जाओगे!
मन पर अंकित हैं, ये रेखाएँ,
जख्म किसे दिखलाएँ,
रेखाएँ के इक मकरजाल, तुम भी दे जाओगे!
न जाने क्यूँ, इक मुझे ही टोक कर,
शायद, तन्हा सफर में देख कर!
थाम कर मेरी बाहें, पूछती है मुझसे ही राहें....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-04-2019) को "तुरुप का पत्ता" (चर्चा अंक-3307) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सदैव आभारी हूँ ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना मंगलवार १६ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Deleteजीवन के एहसास मन पर रेखाओं के रूप में अंकित होते रहते है..... सच है..
ReplyDeleteअच्छी रचना।
स्वागत है आपका स पटल पर। आप गुणीजनों की प्रतिक्रिया ही हमारा म्रार्गदर्शन करती है। बहुत-बहुत धन्यवाद ।
Deleteये राहें प्रश्न करती हैं हर जाने वाले से ... पूछती हैं लौट पाओगे या नहीं ... पर जवाब शायद स्वयं में अन्तर्निहित होता है ...
ReplyDeleteहमेशा उत्साहवर्धन व सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु सदैव आभारी हूँ आपका। शुभकामनाएं
Deleteवाह!!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब!!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय शुभा जी।
Deleteवाह..बहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय पम्मी जी।
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