संग ले चला, मुझे, न जाने कहीं,
या, चल पड़ी है शायद ज़मीं!
बुन रहा, धुन कोई उधेड़-बुन,
गढ़ रही पहेली, वो कोई गूढ़ सी,
अंत ना, इन क्षणों का कोई!
गुज़र रही, कंपकपाती पवन,
सिहर उठी, ठिठुरती हरेक कण,
कह गई, बात क्या इक नई!
छू गई अंतस्थ, मर्म जज्बात,
नर्म सी छुअन, गर्म से एहसास,
चुभन इक, जागी फिर नई!
चीर गया, पल सन्नाटों भरा,
वो अजनबी, गूंज इक भर गया,
धुन, इक अनसुनी गीत सी!
पल-पल, बड़ी बेसबर घड़ी,
कर गई मुग्ध सी, झूमती लड़ी,
अवाक, ताकते हम यूं ही!
अजनबी शाम, अजनबी नमीं,
संग ले चला, मुझे, न जाने कहीं,
चल पड़ी है शायद ज़मीं!